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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बुनना सिखाया जाता है। मैं आशा करता हूँ कि जब मैं अगली बार हैदराबाद आऊँगा तब मुझे यह देखनेको मिलेगा कि यहाँ कपड़ा बुनना भी सिखाया जाता है।

अन्तमें महात्माजीने कहा कि आपके कालेजके विद्यार्थियों और कर्मचारियोंको देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है और आप लोगों द्वारा किये गये हार्दिक स्वागतके लिए मैं आपका आभारी हूँ।

मुझे दुःख है कि समयाभावके कारण मैं आप लोगोंसे उतनी देरतक बातचीत नहीं कर पाया जितना कि मैं चाहता था। मैं इस कालेजकी समृद्धिकी कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसमें विद्यार्थीगण, जिनका हित साधन इस कालेजका उद्देश्य है, अधिक संख्यामें प्रविष्ट होंगे।

'वन्देमातरम्' और 'महात्माकी जय' के नारोंके बीच गांधीजीने अपने दलके साथ वहाँसे प्रस्थान किया।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, २९-७-१९२०

 

५८. भाषण : खिलाफत सम्मेलन, हैदराबाद (सिन्ध) में

२४ जुलाई, १९२०

प्रस्ताव ५, जिसे हाजी अब्दुल्ला हारूँने पेश किया:

यह सम्मेलन गांधीजीकी असहयोग नीतिको स्वीकार करता है और इस विषयमें केन्द्रीय खिलाफत समितिके आदेशोंपर चलनेको तैयार है।

गांधीजीने जोरदार शब्दोंमें इसका समर्थन किया। उन्होंने असहयोगकी चारों मंजिलोंके हर पहलूको सामने रखते हुए असहयोगका रूप समझाया। सब खिलाफत-समर्थकों को हिदायत की कि पहली अगस्तको असहयोगकी पहली मंजिलकी सभी आज्ञाओंको अवश्य कार्यान्वित किया जाये। साथ ही यह भी कहा कि उस दिन हड़ताल की जाये, व्रत रखा जाये और सार्वजनिक सभाका आयोजन किया जाये और कहा कि हिन्दू-मुस्लिम एकता अवश्य स्थापित होनी चाहिए। गांधीजीने कहा कि हिजरत असहयोगकी आखिरी मंजिल है। जो लोग देश छोड़नेके लिए तैयार हैं उन्हें चाहिए कि वे [सरकारसे] असहयोग करें, अन्यथा उनकी हिजरत दिखावा-मात्र है और निर्बलताकी अभिव्यक्ति है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एक्स्ट्रैक्ट्स, १९२०, पृष्ठ ११४१