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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/११९

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भाषण : सिन्ध राष्ट्रीय कालेजमें

तो मुझे बड़ी वेदना होती है। जिनका पालन-पोषण उस पद्धतिसे हुआ है वे उसके अनेकों दोष और उसने राष्ट्रीयताकी भावनाको जो हानि पहुँचाई है उसे नहीं समझ सकते। मैंने स्वयं बहुत दूर तक यही शिक्षा पाई है और मैं मानता हूँ कि इससे कुछ लाभ हुआ है, लेकिन अपने देशवासियोंपर अंग्रेजीका मुलम्मा चढ़ा हुआ देखकर मुझे जितना दुःख होता है उतना अन्य किसी वस्तुसे नहीं। मैं इंग्लैंडमें काफी रहा हूँ और मैं जानता हूँ कि वहाँ कोई अंग्रेज किसी दूसरे अंग्रेजसे अपनी मातृभाषाको छोड़कर अन्य किसी भाषामें वार्तालाप नहीं करता। जब मैं भारतीयोंको अपने भारतीय भाइयोंके साथ विदेशी भाषामें बोलते देखता हूँ तब मुझे बड़ी वेदना होती है। प्रोफेसर यदुनाथ सरकार[]और श्री सिगविक[]कहा करते हैं कि भारतीय विद्यार्थीके ऊपर अंग्रेजीका इतना भारी बोझ है कि उसके परिणामस्वरूप वह मौलिक रूपसे कुछ सोच ही नहीं सकता। सिन्धी विद्यार्थीको मैं पहले सिन्धी और बादमें हिन्दी पढ़नेकी राय दूँगा। हिन्दीको तो समस्त भारतकी भाषा होना ही है; इसलिए इसका अध्ययन अन्य प्रदेशोंके लिए अनिवार्य है ताकि सभी एक ही मंचपर एकत्रित हो सकें। हिन्दीके पक्षमें अन्य कारण भी हैं, फिलहाल इतनोंको ही सामने रखता हूँ; इसलिए मुझे यह जानकर सन्तोष हो रहा है कि सिन्ध राष्ट्रीय कालेजमें हिन्दीको प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

इसके पश्चात् गांधीजीने अपने दूसरे प्रिय विषय——स्वदेशी——को उठाया। उन्होंने कहा, भारतवर्षके निवासियोंका मुख्य आधार खेतीबारी है परन्तु उन्हें एक पूरक व्यवसायको आवश्यकता भी है जिसके सहारे वे अपना आपत्ति और अनावृष्टि आदिका समय काट सकें। वह व्यवसाय तो कपड़ा बुनना ही हो सकता है। एक जमाना था जब भारतीय वस्त्र देशका गौरव थे और बहुत महीन होनेके कारण उनकी माँग समस्त संसारमें थी। उससे दुनियाकी धन-राशि भारतमें आती थी और उसकी सन्तानको सुख और सन्तोष देती थी। वर्तमान समयमें इसे तथा इसी प्रकारके अन्य उद्योगोंको दुर्दिनोंका सामना करना पड़ रहा है। देशभक्तिकी भावनासे भरे हुए नवयुवकोंका यह कर्त्तव्य है कि वे बुनाईके पुनरुज्जीवनमें सहायक बनें। वे यह काम विलायती कपड़ों और विलायती माल——वे देखनेमें चाहे जितने सुन्दर क्यों न हों——के स्थानपर स्वदेशी कपड़ा और स्वदेशी माल काममें लाकर कर सकते हैं। इससे हजारों स्त्रियोंको काम मिलेगा। इससे हमारे उन अनेक देशवासियोंको रोटी मिलेगी जो अपना पेट बड़ी कठिनाईसे भर सकते हैं या दो जून भी भोजन नहीं पाते हैं। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि सिन्ध राष्ट्रीय कालेजमें कृषिके साथ-साथ कालीन

  1. (१८७०-१९५८); इतिहासकार तथा ए शार्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब और फॉल ऑफ दी मुगल एम्पायर आदि पुस्तकोंके लेखक।
  2. हेनरी सिगविक (१८३८-१९००); एक अंग्रेज नीतिवेत्ता, दार्शनिक और विचारक।