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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसका चरमरूपमें प्रयोग किया जाये तब तो यह सरकारको बिलकुल ठप ही कर दे सकता है।

एक भाई मेरे भाषणोंको बराबर सुनते रहे हैं। एक बार उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मेरे ये भाषण भारतीय दण्ड संहिताके राजद्रोह-सम्बन्धी खण्डके अन्तर्गत नहीं आते। यद्यपि मैंने इस बातपर पूरा विचार नहीं किया था, फिर भी मैंने उनसे कहा कि सम्भावना यही है कि मैं इस खण्डके अन्तर्गत आता हूँ और अगर उसके अनुसार मुझपर आरोप लगाया गया तो मैं अपनेको "निर्दोष" नहीं बताऊँगा। कारण, मुझे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि मौजूदा सरकारसे मुझे कोई प्रेम नहीं है। और मेरे भाषणोंका उद्देश्य लोगोंके मनमें उस सरकारके विरुद्ध, जिसने अपनी कार्रवाइयोंसे उनका विश्वास, सम्मान और समर्थन प्राप्त करनेके सारे दावे खो दिये हैं "नफरत" पैदा कर देना है——ऐसी नफरत कि वे उस सरकारको सहायता और सहयोग देना अपने लिए शर्म की बात मानें।

मैं साम्राज्य सरकार और भारत सरकारमें भेद नहीं करता। खिलाफतके सम्बन्धमें साम्राज्य सरकारपर जो नीति थोप दी, उसे उसने स्वीकार कर लिया है। उधर पंजाबके मामलेमें भारत सरकारने आतंकवादकी जो नीति अपनाई और एक बहादुर जातिको पुंसत्वहीन बना देतेकी जिस प्रक्रियाका सूत्रपात किया, उसका समर्थन साम्राज्य सरकारने किया। ब्रिटिश मन्त्रियोंने अपने वचन तोड़ डाले हैं और भारतके सात करोड़ मुसलमानोंकी भावनाको मनमाने तौरपर चोट पहुँचाई है। पंजाब सरकारके उद्धत अधिकारियोंने सर्वथा निर्दोष स्त्रियों और पुरुषोंको अपमानित किया। लेकिन स्थिति यह है कि न केवल उनके अन्यायोंका प्रतिकार नहीं किया गया है, बल्कि जिन अधिकारियोंने पंजाबके लोगोंको इतनी निर्दयताके साथ अमानुषिक अपमानका शिकार बनाया, वे अब भी इस सरकारके अधीन अपने-अपने पदोंपर बने हुए हैं।

जब गत वर्ष मैं अमृतसरमें था, उस समय मैंने पूरी उत्कटताके साथ लोगोंसे अनुरोध[१]किया था कि वे सरकारके साथ सहयोग करें और शाही घोषणामें जिन बातोंकी कामना की गई है उन्हें फलीभूत करनेमें हाथ बँटायें। मैंने वैसा इसलिए किया कि मैं ईमानदारी के साथ मानता था कि एक नये युगका उदय होनेवाला है, और भय, अविश्वास तथा इनसे उत्पन्न होनेवाले आतंककी पुरानी भावनाओंके स्थानपर अब सम्मान, विश्वास और सद्भावनाके नये भाव आनेवाले हैं। मैंने सचमुच ऐसा मान लिया था कि मुसलमानोंकी भावनाको तुष्ट किया जायेगा; जिन अधिकारियोंने पंजाबमें सैनिक शासनके दौरान गलत आचरण किया था, उन्हें कमसे-कम बरखास्त कर दिया जायेगा और लोगोंको अन्य प्रकारसे भी यह प्रतीति कराई जायेगी कि जिस सरकारने जनताकी ज्यादतियोंके लिए उसे दण्डित करनेमें बराबर इतनी चुस्ती दिखाई है (और वैसा करके ठीक ही किया है) वह सरकार अपने मुलाजिमोंको भी उनके दुष्कृत्योंके लिए दण्डित करनेमें चूक नहीं सकती। लेकिन मैंने बहुत ही आश्चर्य और निराशाके साथ देखा कि साम्राज्यके वर्तमान सूत्र-संचालक तो बेईमान और बेहया हो

  1. देखिए खण्ड १६ पृष्ठ, ३७४-७८ ।