कि हम सरकारके अस्तित्वके लिए खतरा भी उपस्थित करें और साथ ही, अगर सरकार अपने अस्तित्वको खतरेमें डालनेवालोंको दण्डित करके अपने-आपको बचानेकी कोशिश करे तो उस कोशिशका विरोध भी करें।
यंग इंडिया, २८-७-१९२०
६३. एक महत्त्वपूर्ण त्यागपत्र
खिलाफत दलके पंजाबके महत्त्वपूर्ण दौरेके दरम्यान मुझे एक सब-डिविजनल अफसरने[१]अपने त्यागपत्रकी एक प्रति दी। उन्होंने त्यागपत्र खिलाफतके सवालपर दिया है। यह इसी अंकमें अन्यत्र छापा गया है। पत्रसे स्पष्ट प्रकट होता है कि विभिन्न वर्गोंके मुसलमानोंपर टर्कीके साथ हुई शान्ति-सन्धिकी शर्तोंका कैसा असर हुआ है। यह मुस्लिम-संसारके प्रति एक ऐसा अन्याय है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता और इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है इंग्लैंड। जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, इस अन्यायका निराकरण करवानेके लिए जो आन्दोलन चल रहा है, उसका जोर कम होनेके बजाय बढ़ता ही जायेगा। श्री मुहम्मद आजम बीस वर्ष पुराने अधिकारी हैं और उनकी सेवाएँ लगभग अनिवार्य समझी जाती हैं। जब कोई ऐसा अधिकारी भी किसी सरकारसे इस कारण अलग हो जाये कि वह एक बहुत बड़े अन्यायमें शरीक हुई है तो यह जरूरी हो जाता है कि वह सरकार अपनी उस कार्रवाईपर एक बार ध्यानसे सोचे।
लेकिन यह त्यागपत्र प्रकाशित करनेमें मेरा मुख्य उद्देश्य इस ओर सरकारका ध्यान दिलाना नहीं है (क्योंकि सारी स्थिति उसके ध्यानमें तो है ही), बल्कि श्री मुहम्मद आजमको बधाई देना और जनताके सामने उनका अनुकरणीय उदाहरण पेश करना है। श्री मुहम्मद आजमने एक ऐसे पदको लात मार दी है जो बहुत-से लोगोंके लिए स्पृहणीय होगा। सांसारिक दृष्टिकोणसे देखा जाये तो इस तरह उन्होंने बहुत बड़ी चीज खो दी है। लेकिन धर्म या सम्मानकी दृष्टिसे उन्होंने कुछ खोया नहीं बल्कि पाया ही है। अपनी आत्माको बेचकर रुतबा और पैसा पानेमें क्या रखा है? उनके वरिष्ठ अधिकारियोंके लिए यह श्रेयकी बात है कि उन्होंने इस आधारपर त्यागपत्रकी स्वीकृति की सिफारिश की है कि वह अन्तरात्माकी खातिर दिया गया है। अगर ऊँचे तबकेके सरकारी नौकर श्री मुहम्मद आजमका अनुकरण करें तो शायद इस आन्दोलनका उद्देश्य पूरा हो जाये और निचले तबकेके कर्मचारियोंको अपनी नौकरियाँ भी न छोड़नी पड़ें।
श्री मुहम्मद आजमने अपने आचरण द्वारा सक्रिय साहसका उदाहरण प्रस्तुत किया है। जिसकी मिसाल मुश्किलसे ही देखनेको मिलती हैं। लेकिन कोई काम न करनेमें
- ↑ ऐबटाबादके सब-डिविजनल अफसर।