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पहली अगस्त

भी एक साहस है; मेरी समझमें भारतके लोगोंमें वह पर्याप्त मात्रामें है। अतः भरोसा किया जा सकता है कि कोई भी भारतीय उस पदके लिए अर्जी नहीं देगा जिसे उन्होंने रिक्त किया है। यह तो लगभग तय है कि कोई मुसलमान ऐसा नहीं करेगा। लेकिन मुझे आशा है कि हिन्दू लोग भी उतनी ही दृढ़तासे काम लेंगे और अपने मुसलमान भाइयोंके सामने यह सिद्ध कर देंगे कि मुसलमान जिस कठिनाईमें पड़ गये हैं, उसे वे भली भाँति महसूस करते हैं और वे उन्हें अपना समर्थन देनेमें पीछे नहीं रहेंगे।

शायद कोई कहे कि इस पदके लिए किसी भारतीयको अर्जी देनेकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि यह ऐसा पद है जिसे कोई अंग्रेज भी खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहेगा। मुझे भी इसमें कोई सन्देह नहीं है। लेकिन अगर विरोध प्रदर्शनार्थ कोई स्वेच्छासे किसी पदका त्याग कर दे और उस पदके लिए विरोध करनेवाले वर्गका कोई भी व्यक्ति अर्जी न दे तो इससे सामान्य स्थितिमें कुछ फर्क तो पड़ ही जाता है। जो चीज जरूरी है वह सिर्फ यह कि लोगोंमें सरकारी नौकरियोंके लिए जो एक गलत ढंगका मोह आ गया है, उससे छुटकारा पा लिया जाये। योग्य और ईमानदार लोगोंके लिए इज्जतके साथ अपनी रोजी कमानेके और भी बहुत-से रास्ते हैं। आखिरकार पूरी आबादीमें सरकारी नौकरोंकी संख्या दालमें नमकके बराबर ही तो है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-७-१९२०

 

६४. पहली अगस्त

ऐसी कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती कि पहली अगस्त से पूर्व सम्राट्के मन्त्री शान्ति-सन्धिकी शर्तोंमें परिवर्तन करनेका वचन दे देंगे जिससे उस दिन असहयोग आंदोलनका समारम्भ स्थगित हो जाये। आगामी पहली अगस्तका दिन भारतीय इतिहासमें उतना ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा जितना महत्त्वपूर्ण गत वर्षका ६ अप्रैल सिद्ध हुआ था। ६ अप्रैलको ही रौलट अधिनियम समाप्त होनेकी प्रक्रिया आरम्भ हुई थी। कोई भी नहीं मान सकता कि उस प्रबल आन्दोलनके बावजूद, जो समाप्त नहीं सिर्फ स्थगित ही किया गया है, रौलट अधिनियम बना रह सकेगा। यह बात सभीको स्पष्ट होगी कि जो शक्ति पंजाब और खिलाफतके मामलेमें न्याय करनेकी अनिच्छुक सरकारको न्याय देनेपर विवश कर रही है वही शक्ति रौलट अधिनियमको भी रद करवा कर रहेगी। और वह शक्ति है सत्याग्रहकी शक्ति——चाहे उसे सविनय अवज्ञाका नाम दीजिए या असहयोगका।

बहुत-से लोग गत वर्षकी वारदातोंके कारण असहयोग प्रारम्भ करनेकी बातसे भयभीत हैं। उन्हें भय है, कहीं ऐसा न हो कि भीड़ फिर उसी तरह पागलपन कर बैठे और परिणामतः फिर कहीं गत वर्षकी तरह ही सरकार वही प्रतिशोधात्मक कार्र-