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७१. युवराजका आगमन

मैंने यह मत व्यक्त किया था कि हमारी वर्तमान स्थितिको देखते हुए, यदि इस समय युवराज यहाँ पधारें तो हम उनका स्वागत नहीं कर सकेंगे। मेरे इस मतको भी मॉण्टेग्यु अराजभक्तिपूर्ण मानते हैं।

वास्तवमें इससे इतना ही सूचित होता है कि अब समय बदल गया है। युवराजका स्वागत न करनेमें मैं स्वयं तो कोई अराजभक्ति नहीं मानता। इतना ही नहीं बल्कि इस कठिन समयमें स्वागत समारोहोंमें भाग लेनेकी बातको मैं जनताके प्रति विश्वासघात करना समझता हूँ।

प्रधान मन्त्रीका कहना है, माननीय युवराज ब्रिटिश साम्राज्यके प्रतिनिधिके रूपमें यहाँ पधार रहे हैं। साम्राज्यकी समृद्धि एवं शक्तिका प्रदर्शन करनेके निमित्त उन्हें आना पड़ेगा, यह हम जानते हैं। इस स्वागत-आयोजनमें भाग लेनेका अर्थ मैं वाइसराय से लेकर छोटेसे-छोटे अधिकारीतक को मान देनेके बराबर समझता हूँ। इन अधिकारियोंमें पंजाब के वे अधिकारी भी आ जाते हैं जिन्होंने अपने व्यवहारसे अपने पदकी प्रतिष्ठाको चोट पहुँचाई है।

जिन लोगोंकी भावनाओंको ठेस पहुँची है, जिनके घाव अभी भरे नहीं हैं और लॉर्ड सभाने अपने अज्ञान तथा उद्धतताके कारण जनरल डायरके अपराधोंको ढककर जिनके घावोंपर नमक छिड़कनेका काम किया है, वे लोग युवराजको दिये जानेवाले स्वागत समारोहोंमें भाग कैसे ले सकते हैं? इनमें भाग लेना नौकरशाहीको सज्जनताका प्रमाणपत्र देनेके समान है। जनतामें जो अशान्ति फैली है उसे नौकरशाही शांतिका जामा पहनाना चाहती है। इसलिए यदि लोगोंमें कुछ और करनेकी हिम्मत न हो, वे लोग कोई और बलिदान करनेको तैयार हों या न हों तथापि इतनी अपेक्षा तो उनसे की ही जाती है कि वे इन समारोहोंमें भाग नहीं लेंगे और इस प्रकार अपनी पीड़ित भावनाओंको अभिव्यक्त करेंगे।

स्वागत समारोहोंमें भाग न लेकर हम युवराजका कोई अपमान नहीं कर रहे हैं। इसमें युवराजका अपमान कदापि नहीं है; उनका अपमान करनेका इरादा किसीका नहीं हो सकता। यदि इससे किसीका अपमान होता ही है तो वह केवल नौकरशाहीका। लेकिन हम उसका भी अपमान नहीं करना चाहते। हाँ, उसे अपने सिरपर बैठानेसे इनकार करते हैं और ऐसा करना हमारा स्पष्ट कर्त्तव्य है। अतएव मुझे उम्मीद है कि श्री मॉण्टेग्यु भले ही कुछ कहें, हम स्वागत समारोहोंमें भाग न लें। यह हमारा धर्म है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १-८-१९२०