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श्री मॉण्टेग्युकी धमकी


किन्तु यदि मुझे गिरफ्तार किया गया तो जनताको क्या करना चाहिए? हमारे संघर्षमें जेल जानेका विचार तो ग्रहीत ही है। अतएव मेरे जेल जानेसे जनताको हर्षित होना चाहिए; कमसे-कम उसे क्रुद्ध तो नहीं होना चाहिए। मैं जेल जाने-जैसा कार्य करूँ और फिर जेलसे भागूँ अथवा जनता दुःखी हो तो इसमें दोष सरकारका नहीं, हमारा है। जिस राज्यकी सरकार अन्यायी है उस राज्यकी जनताकी स्वतन्त्रता उसकी जेलोंमें ही होती है।

फलतः मुझे उम्मीद है कि यदि मुझे जेल जाना पड़ा तो जनता असहकार-आन्दोलनको और भी तीव्रता से चलायेगी।

सम्भवतः सरकार चाहती है कि जनता उन्मत्त हो उठे; इससे उसे शस्त्र प्रयोग करनेका अवसर मिलेगा। यदि सरकार ऐसा न चाहती हो तब भी जनताके उत्तेजित होनेका परिणाम तो दमन और उत्पीड़न ही होगा।

अतएव अगर जनताने असहकारको समझ लिया है तो मेरी अथवा किसी अन्यकी गिरफ्तारीपर जनता असहकार जारी रखकर सरकारको यह बता देगी कि लोकमतके बिना राज्य चलाना असम्भव है।

लेकिन स्वाभाविक रूपसे मनमें यह प्रश्न उठता है कि श्री मॉण्टेग्य जनताके दमनका उलटा रास्ता अपनाकर दोहरे अपराधके भागी क्यों बनते हैं? एक तो यही अपराध है कि उन्होंने अन्यायमें भाग लिया; और अब उस अन्यायको निभानेके लिए जनताका दमन दूसरा अपराध होगा। सीधा रास्ता तो यह है कि जब जनता असहकारतक करनेके लिए तत्पर हो गई है तब वे लोकमतको मान्यता प्रदान करके अन्यायको दूर कर दें, और इस प्रकार असहकारकी जड़ ही मिटा डालें।

श्री मॉण्टेग्यु इस बातको स्वीकार करते हैं कि मैंने आजतक अपने कार्योंसे ब्रिटिश साम्राज्य की सेवा ही की है। भिन्न-भिन्न अवसरोंपर किया गया सत्याग्रह भी इस सेवामें आ जाता है। वस्तुतः देखा जाये तो मेरी मुख्य सेवाएँ सत्याग्रहके द्वारा अन्यायको दूर करवानेमें ही निहित हैं। मेरी दृढ़ मान्यता है कि आज भी मैं जो कर रहा हूँ वह एक बहुत बड़ी सेवा है। इस समय तो मैं केवल सत्याग्रह कर रहा हूँ। असहकार सत्याग्रह रूपी वटवृक्षकी एक शाखा ही है। यह सब होनेके बावजूद सरकार मेरी आजकी प्रवृत्तिको दूषित समझती है, यह खेदजनक है। मेरे जैसा साम्राज्यका मित्र जब असहकार जैसे प्रचण्ड अस्त्रका उपयोग करनेके लिए कटिबद्ध हो जाये तब श्री मॉण्टेग्युको यह मानकर कि जनताकी भावनाओंको सचमुच ही बहुत ठेस पहुँची हैं, न्याय दिलाने के लिए तत्पर हो जाना चाहिए था। अगर उनके प्रयत्न व्यर्थ जाते तो वे अपने पदसे त्यागपत्र दे सकते थे। लेकिन उन्होंने विपरीत मार्ग ही अपनाया है। तथापि मैं आशा रखता हूँ कि जनता शान्त और अविचलित रहकर श्री मॉण्टेग्युकी धमकीका उत्तर असहकार द्वारा ही देगी।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १-८-१९२०