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७२. टिप्पणियाँ

लोकमान्यकी बीमारी

लोकमान्य तिलक[१]महाराजकी बीमारीने गम्भीर रूप धारण कर लिया है, यह समाचार सुनकर लाखों भारतीयोंके हृदय काँप उठे हैं। जन-जागृतिमें उन्होंने जो भाग लिया है, उन्होंने जिस स्वतन्त्र प्रवृत्तिका परिचय दिया है, जो बलिदान किये हैं, उनके कारण जनता उन्हें पूजती है। लाखोंके लिए उनके वचन आदेश ही हैं। देशका स्वराज्य उनके जीवनका परम उद्देश्य है। आज जनता उनका वियोग सहन करने को तैयार नहीं है। जनता स्वयं इस समय गम्भीर रोगसे पीड़ित है। उस रोगका निदान तथा उपचार करनेमें लोकमान्यने प्रमुख भाग लिया है। इस समय जनता समस्त नेताओंकी सेवाओं तथा सलाहकी भूखी है। नेताओंमें लोकमान्य उच्चतम स्थानपर प्रतिष्ठित हैं। उन्हें अपनी जिन्दगीमें ही स्वराज्य मिल जानेकी उम्मीद है, ऐसा भव्य है लोकमान्यका आशावाद। भगवान् उन्हें व्याधिमुक्त करे, दीर्घायु दे तथा स्वराज्यके दर्शन कराये।

उड़ीसामें अकाल

भाई अमृतलाल ठक्करका हाल ही में प्राप्त पत्र हृदय-द्रावक है। उसमें से मैं निम्नलिखित वाक्य उद्धृत करता हूँ![२]

एक और पत्रमें वे लिखते हैं :

गुजरातसे कुल मिलाकर ४०,००० रुपये मिल चुके हैं लेकिन बुरे महीने तो अभी आगे आनेवाले हैं। अच्छी-खासी रकमकी जरूरत पड़ेगी। जनतासे एक बार और अपील करनेके लिए मैं आपसे विशेष अनुरोध करता हूँ। कुल मिलाकर डेढ़ लाखसे कम रुपये नहीं चाहिए। अन्य प्रान्तोंसे प्राप्त हुई रकमको मिलाकर अब तक लगभग अस्सी हजार रुपये हुए हैं।

इसमें मुझे अपनी ओरसे कुछ कहनेको नहीं रह जाता। बरसात अच्छी हुई है, फिर भी उड़ीसाके लोगोंका कष्ट एकाएक दूर होता नहीं दिखता। भाई अमृतलाल जैसे-जैसे परिस्थितिका अध्ययन करते जाते हैं वैसे-वैसे उन्हें और भी अधिक दुःखके दर्शन होते हैं। इस दुःखी प्रान्तके लोगोंमें अपना दुःख कह सुनाने तककी हिम्मत नहीं रह गई है। मुझे उम्मीद है कि सब लोग उनके दुःखमें भाग लेकर इस पुण्यकार्यमें योगदान देंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-८-१९२०

१८-८

  1. बाल गंगाधर तिलक (१८५६–१९२०); देशभक्त, राजनीतिज्ञ और विद्वान्। यह टिप्पणी स्पष्टतः उनकी मृत्युसे पूर्व लिखी गई थी।
  2. यहाँ नहीं दिया गया। गांधीजीने जिस भागके उद्धृत किये जानेकी चर्चा की है उसमें कहा गया था कि पिपलीयानाके लोग अन्नके अभाव में मर रहे हैं।