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भाषण : असहयोगपर

खड़ा हुआ हूँ, और आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इस धर्म-युद्धमें शामिल हों। लेकिन आपको जो व्यक्ति इस युद्धमें शामिल होनेको आमन्त्रित कर रहा है, वह कोई सपनोंकी दुनियामें रहनेवाला व्यक्ति नहीं है, कोई सन्त नहीं है। मैं नहीं मानता कि मैं सपनोंकी दुनियामें रहनेवाला व्यक्ति हूँ। मैं सन्त होनेका दावा भी नहीं करता। मैं धरतीपर रहनेवाला पार्थिव प्राणी हूँ, आपके जैसा ही या शायद आपसे भी अधिक साधारण आदमी हूँ। मुझमें भी आपकी जैसी ही कमजोरियाँ सम्भव हैं, लेकिन मैंने दुनिया देखी है। मैंन दुनियामें अपना जीवन आँखें खोलकर जिया है। मनुष्यको आजतक जिन कठिनसे-कठिन अग्नि- परीक्षाओंमें से गुजरना पड़ा है, उनसे मैं गुजरा हूँ। मैं इस तपस्यासे गुजर चुका हूँ। मैंने अपने पवित्र हिन्दुत्वके रहस्यको समझा है। मैंने यह सीखा है कि असहयोग सिर्फ सन्तका ही नहीं, प्रत्येक साधारण नागरिकका कर्त्तव्य है——प्रत्येक साधारण नागरिकका, जो बहुत ज्यादा नहीं जानता, न बहुत जाननेकी परवाह करता है, लेकिन अपना साधारण घरेलू कर्त्तव्य निभाना चाहता है। यूरोपके लोग अपने जनसाधारणको भी, गरीब जनताको भी, तलवारके सिद्धान्तकी सीख देते हैं। लेकिन भारतकी परम्पराओंकी रक्षा करनेवाले ऋषियोंने भारतकी जनताको तलवारके सिद्धान्तकी नहीं, हिंसाके सिद्धान्तकी भी नहीं, बल्कि कष्टसहन और आत्मबलिदानके सिद्धान्तकी सीख दी है। और जबतक मैं और आप यह प्राथमिक सबक सीखनेको तैयार नहीं हैं तबतक, समझ लीजिये, हम तलवार उठानेके लायक भी नहीं हो सकते, और यही वह सबक है जो हमारे भाई शौकत अलीने सीखा है——हमें सिखानेके लिए सीखा है, और यही कारण है कि मैंने उन्हें पूरी विनम्रताके साथ जो सलाह दी, उसे आज वे स्वीकार करते हैं और कहते हैं: "असहयोग जिन्दाबाद।" याद रखिए कि इंग्लैंडमें भी किसी समय विद्यार्थियोंको स्कूलोंसे हटाया गया था, और कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्डके कालेज बन्द कर दिये गये थे। वकीलोंने अपना धन्धा छोड़कर खाइयोंमें युद्ध लड़ा था। मैं आपसे खाइयोंमें जाकर लड़नेको नहीं कहता, यह अवश्य कहता हूँ कि इंग्लैंडके स्त्री-पुरुष और बहादुर नौजवानोंने जो बलिदान किया था, वह आप भी करें। याद रखिए कि आप एक ऐसे राष्ट्रके विरुद्ध जूझ रहे हैं जो अवसर आनेपर बड़ेसे-बड़ा बलिदान करनेकी भावना से ओतप्रोत है। याद रखिए कि मुट्ठी-भर बोअरोंने एक परम शक्तिशाली राष्ट्रके खिलाफ कैसा कड़ा मोर्चा लिया था। लेकिन उनके वकीलोंने अपना अध्ययन-कक्ष छोड़ दिया था, माताओंने अपने बच्चोंको स्कूलों और कालेजोंसे हटा लिया था और वे सबके-सब राष्ट्रके स्वयंसेवक बन गये थे। मैंने उन्हें अपनी आँखों यह सब करते देखा है। मैं भारतमें अपने देश-भाइयोंसे किसी और सिद्धान्तका नहीं, सिर्फ आत्मबलिदानके सिद्धान्तका पालन करनेको कह रहा हूँ और यह सिद्धान्त हर युद्धकी पहली शर्त है। आप चाहे हिंसावादी विचारधारा के हों या अहिंसावादी विचारधाराके, बलिदान और अनुशासनकी आगसे होकर तो आपको गुजरना ही पड़ेगा। ईश्वर आपको और हमारे नेताओंको सद्बुद्धि दे, साहस और सच्चा ज्ञान दे कि वे देशको उसके प्रिय और चिर पोषित लक्ष्यकी दिशामें बढ़नेकी प्रेरणा दें। ईश्वर भारतकी जनताको सच्चा रास्ता दिखाये, सच्ची दृष्टि दे