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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और बलिदानके इस कठिन तथापि सुगम मार्गका अनुसरण करनेकी योग्यता और साहस दे।

[अंग्रेजीसे]
स्पीचेज ऐंड राइटिंग्स ऑफ महात्मा गांधी, (तृतीय संस्करण), पृष्ठ ५२४-४१
हिन्दू, १३-८-१९२०

 

९५. भाषण : मद्रासमें असहयोगपर[१]

१३ अगस्त, १९२०

गांधीजीने खिताबोंके सम्बन्धमें बात करते हुए इच्छा व्यक्त की कि अध्यक्ष, हकीम अब्दुल अजीज अपना खिताब त्याग दें।

उन्होंने असहयोगके दूसरे कदम, अर्थात् सरकारी पदोंसे त्यागपत्र देनेकी बातको विस्तारसे समझाया।

इसके बाद उन्होंने तीसरे और चौथे अर्थात् सैनिक सेवासे हटने और करअदायगीसे इनकार करनेके कदमोंकी चर्चा की।

उन्होंने कहा कि तीसरी अवस्थापर पहुँचते-पहुँचते, हम लगभग भारतके शासक बन जायेंगे; परन्तु जबतक खिताबयाफ्ता लोग अपने खिताब, अवैतनिक न्यायाधीश अपने पद और वकील अपनी वकालत नहीं छोड़ देते, बच्चोंको सरकारी और सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थाओंसे नहीं हटा लिया जाता, विधान परिषदोंका बहिष्कार नहीं किया जाता, स्वदेशी-व्रतको पूरी तरह प्रोत्साहन नहीं दिया जाता और नेतागण हाथके कते-बुने कपड़ोंमें जनताके पास अपनी मोटरें छोड़कर फकीरोंकी तरह नंगे पाँव नहीं जाते तबतक वे सरकारी कर्मचारियों और सिपाहियोंसे अपने-अपने पद त्यागनेका अनुरोध नहीं कर सकते और न रैयतसे करोंकी अदायगी बन्द करनेके लिए कह सकते हैं। उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि पदोंको छोड़नेसे वे असहाय हो जायेंगे। खिलाफत समिति उनकी सहायता करेगी...यदि हम असहयोग सफलतापूर्वक चला सकें तो सरकारको अपना शासन चलाना असम्भव हो जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट, एक्स्ट्रैक्ट्स, १९२०, पृष्ठ १२७७

 
  1. जुमा मस्जिद, ट्रिप्लीकेनमें।