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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं स्वयं अपनेको आदर्शवादी मानता हूँ और व्यवहारकुशल भी। लेकिन मैं नहीं समझता कि उस नियमका पालन तभी हुआ माना जा सकता है जब वह ज्ञानपूर्वक किया जाये। इसलिए मैं श्रद्धालु और अश्रद्धालु सबके सम्मुख इस नियमको ठीक वैद्यके समान प्रस्तुत करता हूँ। उसके महत्त्वको समझनेके लिए ज्ञानकी जरूरत नहीं है——इसे सिद्ध करनेके निमित्त मैं अपनेसे विपरीत विचार रखनेवाले लोगोंको अपने साथ लेकर चल रहा हूँ। भाई शौकत अली हिंसाको प्रधान महत्त्व देते जान पड़ते हैं, वे दुश्मनको मारना ही अपना धर्म समझते हैं। फलतः वे अहिंसाके सिद्धान्तका पालन अपने हृदयमें घृणा रखकर करते हैं। वे असहयोगकी कायरोंका अस्त्र मानते हैं, इसीसे शरीरबलकी अपेक्षा उसे हीन समझते हैं। इसके बावजूद वे मेरे साथ आ मिले हैं, क्योंकि इस समय वे स्पष्टतः यह समझते हैं कि निःशस्त्र असहयोगके अतिरिक्त किसी अन्य उपायसे उनके धर्मकी रक्षा नहीं की जा सकती।

जिनको मेरे विचारोंमें श्रद्धा नहीं है उनसे भी मैं भाई शौकत अलीका अनुकरण करनेका अनुरोध करता हूँ। मेरे मनकी विशुद्धताको मान लेनेकी उन्हें कोई जरूरत नहीं है; लेकिन इतना अवश्य समझनेकी जरूरत है कि असहयोगके साथ हिंसा नहीं निभ सकती। सम्पूर्ण रूपसे असहयोग आरम्भ करनेमें सबसे बड़ी रुकावट हिंसाकी आशंका ही है। जो शस्त्रधारी हैं अथवा शस्त्र उठानेके लिए उत्सुक हैं उन्हें भी असहयोगके दौरान अपनी तलवारें म्यानमें रखनी पड़ेंगी।

मेरे विचारसे तो जब हिन्दुस्तानमें पशुबलको प्रधानता दी जाने लगेगी तब प्राचीन और अर्वाचीन, पूर्व और पश्चिमके बीचका अन्तर मिट जायेगा। उसी समय मेरी कसौटी होगी। मैं हिन्दुस्तानको अपना देश माननेमें गर्वका अनुभव करता हूँ, क्योंकि मैं मानता हूँ कि हिन्दुस्तान जगत् के सम्मुख आत्मबलकी श्रेष्ठताको सिद्ध करनेकी शक्ति रखता है। जब हिन्दुस्तान पशुबलकी श्रेष्ठताको स्वीकार कर लेगा तब उसे मातृभूमि कहनेमें मुझे हर्षकी अनुभूति नहीं होगी। मेरा विश्वास है कि मेरा धर्म किसी क्षेत्र अथवा भूगोलकी सीमासे बँधा हुआ नहीं है। मेरी कामना है कि ईश्वर मुझे यह बात सिद्ध करनेकी शक्ति दे कि मेरा धर्म देह या क्षेत्रकी संकुचित सीमाओंसे परिसीमित नहीं है।

[गुजराती से]
नवजीवन, १५-८-१९२०