९७. अदालतें और स्कूल
खिलाफत असहयोग समितिने मेरे सुझावपर वकीलोंको वकालत छोड़ने, माता-पितासे अपने बच्चोंको पाठशालाओंसे निकाल लेने तथा कालेजके विद्यार्थियोंको कालेज छोड़ देनेकी सलाह दी है। मैं जानता हूँ कि इस कारण कुछ लोग मुझे पागल समझते होंगे; लेकिन सम्भवतः दक्षिण आफ्रिकामें मैंने जो काम किया उसके कारण अभीतक उन्होंने प्रकट रूपसे मेरी हँसी नहीं उड़ाई है; तथापि मुझे अपने पागलपनमें बुद्धिमत्ता दिखाई देती है! मैं गम्भीरतापूर्वक मानता हूँ कि आजकी परिस्थितियोंको देखते हुए वकालत छोड़ना वकीलोंकी और सरकारी स्कूलोंसे बच्चोंको उठा लेना जनताका कर्त्तव्य हो जाता है। और यदि वकील अदालतोंको त्याग दें तथा लोग सरकारी पाठशालाओं और कालेजोंको खाली कर दें तो इसका बहुत असर होगा।
आइये, सर्वप्रथम हम वकीलोंके सम्बन्धमें विचार करें। किसी भी सरकारकी सत्ता उसकी अदालतोंपर निर्भर करती है। अदालतोंके माध्यमसे वह अपराधियोंको दण्ड देती है। अदालतोंके जरिये ही दीवानी झगड़ोंका फैसला किया जाता है और इसीसे जनतापर सरकारका आधिपत्य जमता है। वकीलोंके बिना ये अदालतें नहीं चल सकतीं। इसलिए वकीलोंको भी अदालतोंका अधिकारी कहा जा सकता है। सरकार न्यायकारी हो तो अदालतों या वकीलोंसे भले ही लाभ होता हो, लेकिन जब सरकार अन्यायी बन गई हो तब उसको अदालतें चलानेमें सहायता देना उसके अन्यायका पोषण करना है। वकीलोंकी मदद न मिले तो अदालतोंका चलाना लगभग असम्भव है। मैं जब वकीलोंसे अदालतका धन्धा बन्द करनेकी बात करता हूँ तब मेरे कहनेका आशय यह नहीं कि वकील सभी काम-धाम छोड़कर घर बैठ जायें; बल्कि मेरे कहनेका अभिप्राय यह है कि उन्हें अपना सारा समय खिलाफत अथवा पंजाबका कार्य करनेमें लगा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसका एक उद्देश्य यह भी है कि वकील अपने मुवक्किलोंपर दबाव डालकर उन्हें अदालतोंमें जानेसे रोकें। ऐसे वकील पंच नियुक्त करें और अपने मुवक्किलोंके झगड़ोंका निपटारा उनके घरोंपर करायें। ऐसा करनेपर अदालतें निष्क्रिय हो जायेंगी और लोग राज्यसत्तासे स्वतन्त्र रहना सीखेंगे।
वकील यदि वकालत छोड़ दें तो यह बात सरकारको अच्छी लगेगी—— ऐसा कुछ लोग कहते हैं। यह कोरा वहम है। यह सच है कि साधारणतया वकील सरकारके कार्योंकी कड़ी आलोचना करते दिखाई देते हैं लेकिन जब सरकारका तख्ता उलटनेके आसार नजर आते हैं तब सरकार वकीलोंकी मदद लेनेकी कोशिश करती है और वकील यह मानकर कि उनकी आजीविका सरकारपर निर्भर करती है उसे मदद देते हैं। इसलिए उस समय वकीलोंकी भी कसौटी हो जाती है।
कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि यदि वकील अपना धन्धा छोड़ दें तो आजीविका उपार्जन के लिए क्या करें? इसका एक उत्तर तो यह है कि बड़े वकीलोंके सम्बन्धमें