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आगामी गुजरात राजनीतिक परिषद्

शिक्षा है। जब हम धर्मके अथवा न्यायके निमित्त अपने बच्चोंको पाठशालाओंसे उठा लेंगे अथवा वे समझदार हुए तो स्वयं ही उनसे बाहर निकल आयेंगे तब उन्हें धर्मकी अथवा न्यायकी जो प्रतीति होगी और उनकी ऐसी शिक्षा कोई साधारण शिक्षा नहीं होगी। उसे मैं तो सच्ची शिक्षा मानूँगा। इस तरह पाठशालाओंको छोड़नेके बाद विद्यार्थी यदि स्वयंसेवक बन जायेंगे तो यह एक अतिरिक्त लाभ ही होगा।

मुसलमान भाइयोंका यह कहना है कि खिलाफतके मामलेमें उन्हें बहुत आघात पहुँचा है। यह सचमुच, धार्मिक भावनाओंका प्रश्न है। पाठशालाओंका बहिष्कार मुसलमान माँ-बापोंकी धार्मिक भावनाओंकी कसौटी है। यह हिन्दुओंकी मुसलमानोंके प्रति मैत्रीकी भावनाओंकी कसौटी है; और यह कसौटी अत्यन्त सहल होनेपर भी बहुत प्रभावशाली है। लाखों विद्यार्थी पाठशालाएँ छोड़ दें, इसका सरकार क्या अर्थ लेगी? यह लोकभावनाका कितना सुन्दर मापदण्ड है। और जनता अपने बचावकी शिक्षाको अपने हाथमें ले यह जन-जागृतिका कितना बड़ा परिचायक है।

गत महायुद्धके समय इंग्लैंडमें बहुत सारी पाठशालाएँ बन्द हो गई थीं। बोअर-युद्ध के समय बोअरोंकी सारी पाठशालाएँ बन्द रही थीं।

उपर्युक्त कारणोंसे मेरी मान्यता है कि हिन्दू और मुसलमान दोनोंको अपने बच्चे पाठशालाओंसे निकाल लेने चाहिए और कालेजके विद्यार्थियोंको कालेज जाना छोड़ देना चाहिए। यह उनका धर्म है। जो कार्य करने योग्य है यदि उसे एक व्यक्ति भी करे तो भी उचित है। एक व्यक्ति द्वारा किया गया पुण्यकार्य उसे तो फल देगा ही। यदि उसे सब लोग करेंगे तो उसका फल सबको मिलेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-८-१९२०

९८. आगामी गुजरात राजनीतिक परिषद्

इस मासके अन्तमें जो परिषद् होनेवाली है, वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उसमें असहयोगके महान् प्रश्नपर निर्णय होनेवाला है। इस परिषद्के जल्दी बुलाये जानेके दो हेतु हैं; लोकमतको प्रशिक्षित करना तथा कांग्रेसके विशेष अधिवेशनमें गुजरातके मतको प्रस्तुत करना। महान् साम्राज्यके साथ असहयोग करनेमें बहुत दृढ़ता, हिम्मत, होशियारी, स्वार्थ-त्याग, एकता और शिक्षा आदिकी जरूरत है। अंग्रेज सरकारकी वर्तमान राजनीति इतनी अधम है कि जबतक यह राजनीति कायम है तबतक इससे सहकार करना पाप है——ऐसा मुझे प्रतिपल अधिकाधिक स्पष्ट रूपसे अनुभव होता है। लेकिन इस राजनीतिमें सुधार करवाना सहज कार्य नहीं है। इसलिए असहयोग सहज कार्य नहीं होना चाहिए और मैं चोरी-छिपे गुजरातका मत जैसे-तैसे असहयोगके पक्षमें ले लेना नहीं चाहता, बल्कि मैं चाहता हूँ कि जो प्रतिनिधि इस परिषद् में भाग ले रहे हैं वे गम्भीरतापूर्वक दोनों पक्षोंकी दलीलोंकी जाँच कर अपनी राय स्वतन्त्रतापूर्वक दें।