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भेंट : मोतीलाल घोषसे

या थोड़े-से लोग, जो कौंसिल जाते हैं, जायें या न जायें——इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि जनसाधारणको कैसे जगाया जाये। आपको ऐसी आवाज बुलन्द करनी चाहिए जिसे जनता समझ सके।

क्या आप यह बात जरा और स्पष्ट रूपसे समझानेकी कृपा करेंगे?

मैं दो दृष्टान्त देकर अपनी स्थिति स्पष्ट करूँगा। सन् १८६६ में बंगालसे बागान-मालिकोंको भागने के लिए यहाँके किसानोंके उस जबरदस्त संगठनके बारेमें तो आपने सुना ही होगा?

हाँ, जरूर।

और क्या आप जानते हैं कि यह सब, छः महीनेमें छः लाख लोगोंका एका, संगठन, जिसकी कोई मिसाल संसारके किसी भी देशके इतिहासमें प्राप्त नहीं है, कैसे किया गया? यह सिर्फ उस अन्यायके विरुद्ध एक जबरदस्त आवाज उठाकर किया गया, जिस अन्यायको एक-एक किसान समान रूपसे महसूस कर रहा था। जैसे ही यह आवाज उठाई गई, वह सीधे सभी लोगोंके दिलोंमें जाकर बैठ गई।

हाँ, मैंने उसके बारेमें सुना है।

यह सब इस तरह हुआ। बागान-मालिकोंके अत्याचारसे किसान लोग कराह रहे थे। उन्होंने देखा कि उनका निस्तार नीलकी खेती न करनेमें ही है। इसलिए उनमें से कुछ बुद्धिमान लोगोंने किसी पवित्र स्थानपर शपथ ली कि नीलकी खेतीसे वे कुछ भी सरोकार नहीं रखेंगे। उसके बाद उन्होंने और लोगोंको भी वही शपथ लेनेको राजी किया। उनका नारा था "कोई भी किसान नीलको हाथ नहीं लगाये———भले ही उसे इतनी यातना दी जाये कि उसकी मृत्यु हो जाये।" और यद्यपि उनपर साहबोंने अत्यन्त पाशविक अत्याचार किये, किन्तु वे झुके नहीं। जब साहब लोग हार गये, तो अधिकारियोंने हस्तक्षेप किया और उन्हें डरा-धमकाकर और आरजू-मिन्नत करके भी दबानेकी कोशिश की। वे चट्टानकी तरह दृढ़ रहे; क्या——"साहब, आप कहते हैं कि आप हमें जेलमें डाल देंगे। डाल दीजिए, किन्तु ये हाथ अब नील नहीं छुएँगे।"——"केवल इस फसल-भर बुवाई कर लो और उसके बाद तुम जो-कुछ करना चाहो करनेको स्वतन्त्र रहोगे।"——"साहब, हमने भगवान्के नामपर कसम खाई है। हम इसे कभी नहीं तोड़ सकते।" यह था दलित और अनपढ़ किसानोंका साहस और दिलेरीसे भरा जवाब।

मोतीबाबूने इसके बाद आयरलैंडके "जमीन" के नारेका उल्लेख किया, जो आइरिश लोगोंमें एकता पैदा करनेके लिए बुलन्द किया गया था। उन्होंने कहा—— "आप जानते ही हैं कि आइरिश नेता जनताको जगानेमें तबतक असफल रहे जबतक कि पार्नेलने 'जमीन' का वह नारा नहीं बुलन्द किया जिसने प्रत्येक आइरिशपर असर डाला। आइरिश लोगोंने उसे समझा, क्योंकि जमीनकी शिकायत सभीकी शिकायत