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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


श्रीमती बेसेंटने कहा, चूँकि मैं असहयोगके बिलकुल विरुद्ध हूँ, इसलिए कांग्रेस महासमितिकी सदस्याके रूपमें यह अनुभव करती हूँ कि मुझे समितिमें रहकर कार्य न करना चाहिए और मैं महासमितिकी अगली बैठकोंमें अगले कांग्रेस अधिवेशनतक सम्मिलित नहीं होऊँगी।

लेकिन श्री मालवीयने कहा कि समितिके पदेन सदस्यके रूपमें मैं समितिकी बैठकमें तबतक भाग लेता रहूँगा जबतक कि मुझे उसे छोड़नेके लिए मजबूर न कर दिया जाये।...

अन्तमें श्री मालवीयने सभी उपस्थित लोगोंसे प्रार्थना की कि वे उतावलीमें कोई कदम न उठायें।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १४-९-१९२०

 

१४७. भेंट : मोतीलाल घोषसे[१]

१० सितम्बर, १९२०

महात्मा गांधीके साथ बाबू गिरधारीलाल,[२]श्री जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती सरलादेवी थीं। परस्पर अभिवादनके बाद महात्मा गांधीने बातचीत इस प्रश्नसे शुरू की कि क्या यह सच है कि बाबू मोतीलालने विशेष कांग्रेसके अध्यक्षको कौंसिलोंके बहिष्कारका विरोध करते हुए पत्र लिखा।

मोतीबाबू : यह सच नहीं है। मैंने कांग्रेस और उसकी विषय- समितिको अध्यक्षकी मार्फत केवल एक सन्देश भेजा था, जिसमें सुझाव दिया था कि असहयोग प्रस्तावपर जल्दबाजीमें निर्णय न लिया जाये, बल्कि नागपुर कांग्रेसतक इसपर विचार करना मुल्तवी रखा जाये।

महात्मा : कौसिलोंके बहिष्कारके सम्बन्धमें तथा कांग्रेसने जो प्रस्ताव पास किया उसकी अन्य बातोंके बारेमें आपकी क्या राय है?

मैं पिछले पचास वर्षोंसे असहयोगी रहा हूँ। कौंसिलोंको मैंने हमेशा एक ढकोसला, एक धोखा और जाल माना है। मैंने स्वयं इनमें से किसीमें प्रवेश करनेकी कोशिश नहीं की है और अपने नेताओंको भी हमेशा ऐसा ही करने की सलाह देता रहा। परन्तु मैं इतना अवश्य कहूँगा कि इस बातका तथा प्रस्तावकी अन्य बातोंका सम्बन्ध बहुत ही थोड़े लोगोंसे है। मुट्ठी-भर खिताबयापता लोग अपने खिताब छोड़ें या न छोड़ें,

  1. कलकत्ताकी अमृतबाजार पत्रिकाके सम्पादक।
  2. लाला गिरधारीलाल; पंजाब वाणिज्य मण्डलके उपाध्यक्ष; अमृतसर फ्लोर ऐड जनरल मिल्सके प्रबन्ध निदेशक।