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कांग्रेस

उन संस्थाओंमें दी जानेवाली शिक्षाका लाभ तबतक क्यों न उठायें जबतक कि हम अपनी राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाएँ स्थापित न कर लें। हाँ, हमें यह सावधानी जरूर बरतनी चाहिए कि सरकारी स्कूलों और कालेजोंमें हमारे बच्चोंके नैतिक बलपर कोई आँच न आये।

चर्चाका अन्तिम विषय था बाबू विपिनचन्द्र पालके संशोधनके उस अंशका हटाया जाना, जिसमें उन्होंने लोकमान्य तिलकके नामपर एक कोष संग्रह करनेकी बात कही थी। बाबू मोतीलालने इस बातपर दुःख प्रकट किया कि यह अंश हटा दिया गया और श्री गांधीके प्रस्तावमें जोड़ा नहीं गया। उन्होंने कहा कि अब हम सबसे पहले जो बात चाहते हैं वह यह है कि सिर्फ इसी देशमें नहीं, बल्कि इंग्लैंड और अमरीकामें भी हमारा प्रचार हो। हमें राष्ट्रीय स्कूल और कालेज तथा पंचायती अदालतें स्थापित करनेके लिए पैसेकी भी जरूरत है। बाबू मोतीलालने महात्माजीसे अपील की कि वे ऐसा एक कोष नागपुर कांग्रेसमें प्रारम्भ करें।

भेंटके अन्तमें मोतीबाबूने श्री गांधीका आलिंगन किया और उन्हें आशीर्वाद दिया।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १७-९-१९२०

 

१४८. कांग्रेस

लाला लाजपतरायकी अध्यक्षतामें हुए विशेष अधिवेशनमें कांग्रेसको जैसे महत्त्वपूर्ण सवालपर निर्णय लेना पड़ा, वैसे महत्त्वपूर्ण सवालपर निर्णय लेनेका अवसर उसके सामने पहले कभी नहीं आया था। जैसे तीव्र विरोधका सामना उसे असहयोगके प्रस्तावपर करना पड़ा, वैसे विरोधका सामना पहले कभी नहीं करना पड़ा था। और तब भी कांग्रेसका मेरा जो अनुभव है उसमें मैंने उसके एक निश्चित बहुमतको अल्पमतकी बातको इतने ध्यानसे सुनते और इतना महत्त्व देते कभी नहीं देखा है जितने ध्यानसे उसने पिछले अधिवेशनमें उसकी बात सुनी और जितना महत्त्व उसकी बातको दिया। फिर विषय-समितिके किसी प्रस्तावका जननेताओं द्वारा इतना संगठित विरोध किये जाते भी मैंने कभी नहीं देखा।

श्रीमती बेसेंटने भारतकी बड़ी शानदार सेवा की है। और पण्डित मदनमोहन मालवीय——यह नाम ही ऐसा है कि जिसे सुनकर मन विस्मय-विभोर हो उठता है। वे वर्षोंसे निरन्तर देशकी शानदार सेवा करते आये हैं और उनका चरित्र सर्वथा निष्कलंक, उज्ज्वल है। श्री दास एक ऐसे दलके नेता हैं जिसका प्रभाव और शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही है। इस अवसरपर मुझे स्वर्गीय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलककी अनुपस्थिति बहुत खटकी। श्री बैप्टिस्टा दक्षिणका नेतृत्व कर रहे थे।