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पत्र : अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीके अध्यक्षको


इस सम्बन्धमें हम लोग कहीं मिलकर परस्पर बातचीत नहीं कर पाये। हमें एक-दूसरेसे पत्रों द्वारा ही सलाह-मशविरा करना पड़ा है।

विभिन्न स्थानोंसे प्राप्त समस्त सुझावोंपर सावधानीसे विचार करके ही हम अपने निष्कर्षोपर पहुँचे हैं।

कांग्रेसमें प्रतिनिधियोंकी संख्या निश्चित करनेकी बातपर हम लोग सहमत नहीं हो सके हैं। यह सुझाव श्री गांधीका ही है। हममें से ज्यादातर लोगोंकी समझमें, प्रतिनिधियोंकी संख्या सीमित कर दिये जानेसे कांग्रेस अपने प्रदर्शनात्मक स्वरूप और प्रभावोत्पादकताको खो बैठेगी। हममें से ज्यादातर लोग यह तो स्वीकार करते हैं कि आजकल कांग्रेसके जो अधिवेशन आदि होते हैं, प्रतिनिधियोंकी अधिकताके कारण उनकी ठीकसे व्यवस्था नहीं हो पाती। लेकिन उनकी राय है कि प्रतिनिधियोंकी संख्यापर कोई प्रतिबन्ध न रखनेका लाभ उससे उत्पन्न होनेवाली कठिनाइयोंकी तुलनामें बहुत अधिक है। इसके विपरीत श्री गांधीका खयाल है कि अगर कांग्रेसको सचमुच प्रातिनिधिक रूप देना है और उसे ठीक विचार-विमर्श करने योग्य संस्था बनाना है तो संख्याको सीमित करना आवश्यक है। वे यह भी मानते हैं कि जब कांग्रेस व्यवस्थित रूपसे भारतकी सारी जनताका प्रतिनिधित्व करने लगेगी और उसकी कार्रवाईमें इस तरह जब सारी जनताकी आवाजका प्रभावकारी और समुचित सन्निवेश होगा और उसके प्रत्येक प्रस्तावपर बारीकीके साथ पूरी तरह सोच-विचार किया जायेगा तब इसकी माँगोंको अस्वीकार करना असम्भव हो जायेगा। उनका खयाल है कि दर्शकों और अतिथियोंके निर्वाध प्रवेशसे ही कांग्रेसके प्रदर्शनात्मक स्वरूपमें कोई कमी नहीं आने पायेगी। संलग्न मसविदेमें श्री गांधीके सुझाव शामिल किये गये हैं। अतएव यदि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी श्री गांधीके सुझावको स्वीकार नहीं करती तो प्रतिनिधियोंकी संख्याको सीमित करनेवाले खण्डोंको निकाल देना पड़ेगा। यदि समिति श्री गांधी संख्याको सीमित करनेके प्रस्तावको स्वीकार कर लेती है तो हम आनुपातिक प्रतिनिधित्वके उस आधारका अनुमोदन करते हैं जो एकल संक्रमणीय मत (सिंगल ट्रान्सफ़रेबल वोट) के नामसे ज्ञात है।

हम अखिल भारतीय कांग्रेस समितिका ध्यान उसकी नीतिमें किये गये परिवर्तनोंकी ओर भी आकर्षित करना चाहते हैं। हमने जो सबसे उल्लेखनीय परिवर्तन सुझाया है वह है अपनाये जानेवाले तरीकोंके सन्दर्भमें 'संवैधानिक' विशेषणके स्थानपर 'वैध और सम्मान्य' विशेषण रखना। हमारे विचारसे 'संवैधानिक' का दोहरा——लोक-प्रचलित और कानूनी——अर्थ असमंजसमें डालनेवाला है। कांग्रेसने सुधारोंके सम्बन्धमें अभी हालमें ही जो प्रस्ताव पास किया है; उसको देखते हुए हमने सम्बन्धित अनुच्छेदसे ये शब्द निकाल दिये हैं——"प्रशासनकी वर्तमान प्रणालीमें निरन्तर सुनिश्चित सुधार।"

हमने जो एक और उल्लेखनीय परिवर्तन किया है वह है भाषाके आधारपर प्रान्तोंका पुनर्गठन। हमारा विश्वास है कि प्रान्तोंका जो गठन विजेताओंने समय-समयपर अपनी जरूरतोंको देखते हुए किया वह ठीक नहीं है तथा यह बात साधा-