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'नवजीवन' को कैसे चलाना चाहिए?

था कि ढसा[१]गाँवके स्त्री-पुरुष कातते हैं, बुनते हैं, इतना ही नहीं बल्कि मुख्यतया वहीं तैयार होनेवाले कपड़ेका उपयोग करते हैं और बचे हुए कपड़ेका निर्यात भी पास के दूसरे गाँवों में करते हैं। ढसा गाँव में भुखमरी नहीं है; हो भी नहीं सकती। प्रत्येक गाँव में अल्प प्रयास से ऐसी ही व्यवस्था कायम हो सकती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ४-७-१९२०

६. 'नवजीवन' को कैसे चलाना चाहिए?

'नवजीवनको अपना माननेवाले' [एक पत्र-लेखक] अपना नाम-पता दिये बिना लिखते हैं:[२]

मैंने अनेक बार लिखा है कि उत्तरदायित्वपूर्ण पत्र लिखनेवाले किसी भी व्यक्तिको गुमनाम रहकर नहीं लिखना चाहिए। मुझे लगता है कि पत्र लिखनेकी ऐसी आदत हम लोगोंमें अन्य देशोंके लोगोंकी अपेक्षा अधिक है। हम अपने [नामसे अपने] विचारोंको अभिव्यक्त करनेमें डरते हैं, संकोच करते हैं। सच्चे विचारोंको प्रगट करनेमें संकोच किस बातका? काहेका भय? मेरी सलाह है कि अपनेको अज्ञात रखकर पत्र लिखनेकी आदतको त्याग देना चाहिए। जिन विचारों अथवा जिस भाषाका उत्तरदायित्व उठाने के लिए हम तैयार न हों उन विचारोंको अभिव्यक्त करने अथवा वैसी भाषाका प्रयोग करनेका हमें अधिकार नहीं है।

उपर्युक्त पत्र हमें जिस रूपमें प्राप्त हुआ है हमने उसे लगभग उसी रूप में प्रकाशित किया है। यदि पत्र-लेखकने अपने हस्ताक्षर दिये होते तो भाषामें जो कटुता है उसमें कुछ फर्क पड़ जाता। तब फिर 'नवजीवन' को अपना माननेका दावा करनेवाला व्यक्ति उपर्युक्त विचारोंको दूसरे ढंगसे ही भाषाका जामा पहनाता। इसी विचारको एक मित्रने मेरे सम्मुख प्रस्तुत किया था लेकिन उसकी शिकायत में विवेक और माधुर्य था। 'नवजीवनको अपना माननेवाला' पत्र-लेखक चाहता तो अधिक विनयशील भाषाका प्रयोग कर सकता था। जो विचार हमें सत्य जान पड़ें वे यदि लोककल्याणार्थं हों तो उन्हें व्यक्त करना हमारा कर्त्तव्य है। लेकिन विवेकका त्याग करनेका अधिकार हमें कदापि नहीं है।

अविवेक क्रोधका सूचक है। जनता इस समय क्रोधमें है। वह क्रोधाग्निमें जल रही है, और इसलिए उसे कुछ भी रुचिकर नहीं लगता। यह मिथ्या धारणा उसके मनमें

  1. सौराष्ट्रमें; २७-६-१९२० के नवजीवनमें द॰ वा॰ कालेलकर तथा नरहरि परीख द्वारा की गई इस गाँवकी यात्राका विवरण प्रकाशित किया गया था।
  2. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया जा रहा है। पत्रमें शिकायत की गई थी कि नवजीवन अपने उन उद्देश्योंकी कसौटीपर पूरा नहीं उतरा जिनका उसने वचन दिया था। बल्कि सच तो यह है कि उसका स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है।