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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होती है। मेरे उपर्युक्त सुझावका उद्देश्य युवकोंको शिक्षासे वंचित करना नहीं है। एक पलके लिए भी मैं लोगोंको शिक्षासे वंचित नहीं करना चाहता लेकिन मेरी मान्यता है कि पाठशालाओंको खाली करने के बावजूद हम लोगोंकी शिक्षाकी अच्छी तरह देख-भाल कर सकते हैं। मेरे उपर्युक्त दोनों सुझाव गम्भीर है, यह मैं जानता हूँ। पाठकोंसे उसे एकदम समझ लेनेकी उम्मीद भी करता हूँ। इन विषयोंपर मैं समय- समयपर चर्चा करूँगा तथा अपनी दलीलोंको जनताके सन्मुख प्रस्तुत करूँगा।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ४-७-१९२०

५. खिलाफत और स्वदेशी

पठान आलमखाँ जीवखाँ दामनगरसे[१]लिखते हैं:[२]

उक्त पत्रको पढ़कर सचमुच हर्ष होता है। खिलाफत आन्दोलनका असर स्वदेशीकी उन्नति में सहायक होगा यह तो स्पष्ट दिखाई पड़ता है। खिलाफतका निर्णय होने तक यूरोपीय मालका उपयोग न करनेकी जो प्रतिज्ञा ली गई है, उसे मैं ठीक नहीं मानता। खिलाफतके वारेमें न्यायोचित निर्णय लिया जाये तो भी मुसलमानोंको यूरोपीय मालका उपयोग नहीं करना चाहिए। यूरोपीय मालका इस्तेमाल न करना ही पर्याप्त नहीं है; अपितु विदेशी अर्थात् जापानी मालका भी बिलकुल इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। स्वदेशीकी प्रवृत्ति हमेशा के लिए है। यूरोप हमारे साथ चाहे कितना भी न्याय क्यों न करे, हिन्दुस्तानको पूर्ण न्याय दिलवानेकी खातिर हमारा धर्म है कि हम हिन्दुस्तानमें तैयार होनेवाली वस्तुओंका ही इस्तेमाल करें। अतएव चरखे और करघेकी प्रवृत्तिमें ही स्वदेशीकी उन्नति निहित है। लाखों मुसलमान भाइयोंने कातना छोड़ दिया, लाखों मुसलमान बुनकर बुनना छोड़ बैठे। हिन्दू तथा मुसलमान स्त्रियाँ, हिन्दू और मुसलमान बुनकर यदि कातने और बुननेका काम हाथमें ले लें तो थोड़े अर्सेमें ही देशकी जरूरतका कपड़ा देशमें ही तैयार होने लगे। इसलिए मैं विशेष रूप से स्त्रियोंका ध्यान दामनगरके उदाहरणकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। किन्तु जबतक पुरुष उनके लिए चरखेका प्रबन्ध नहीं कर देते तथा धुनियेसे रुई धुनवाकर पूनियाँ नहीं बनवा देते तबतक स्त्रियाँ क्या कर सकेंगी? अतएव मैं आशा रखता हूँ कि प्रत्येक गाँवमें कुछ ऐसे परिश्रमी और अध्यवसायी पुरुष सामने आयेंगे जो रुई प्राप्त करके उसे पिंजवाकर और उसकी पूनियाँ बनवाकर कातनेके लिए तत्पर स्त्रियोंको मुहैया कर देंगे। इस कार्यमें कुछ दोष नहीं है। हमने अभी गत सप्ताह ही यह बताया

  1. सौराष्ट्रमें।
  2. उक्त पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। उसमें कहा गया था कि ईंदके दिन लगभग तीन सौ मुसलमानोंने प्रतिज्ञा ली है कि वे विदेशी मालका तबतक उपयोग नहीं करेंगे जबतक खिलाफत के प्रश्नका कोई सन्तोषजनक हल नहीं निकल आता।