१८४. एक व्रत
बम्बई
६ अक्तूबर, १९२०
मैंने कइ महिनेके आगे जन्मपर्यंत शुद्ध खादी पहरनेका व्रत लीया है
मोहनदास गांधी
मूल प्रति (जी॰ एन॰ २५१३) की फोटो-नकलसे।
१८५. भाषण : सूरतमें[१]
६ अक्तूबर, १९२०
अहमदाबादमें विद्यार्थियोंके बीच दिये गये भाषणका सार आपने पढ़ा होगा। उसमें से कितनी ही बातें मैं आपसे भी कहना चाहता हूँ। आपके गुरुजनोंसे मैं शामको[२]बात करूँगा। मैं जहाँ जाता हूँ वहाँ विशेषरूपसे विद्यार्थियोंके साथ सम्बन्ध स्थापित करनेकी कोशिश करता हूँ। मैं स्वयं भी चार लड़कोंका पिता हूँ, इसलिए माँ-बापके प्रति पुत्रके कर्त्तव्यको समझ सकता हूँ। कभी मैं स्वयं पुत्र था और जिन्हें बड़ा मानकर पूजता हूँ मेरे ऐसे बुजुर्ग आज भी जीवित हैं। इसलिए मैं पिताके प्रति पुत्रोंके कर्तव्यको भी अच्छी तरह समझता हूँ। पुत्रको ऐसी सलाह दी जा सकती है कि समय पड़ने पर वह पिताका भी विरोध कर सके। इसलिए मेरी सलाह परस्पर विरोधी सलाह प्रतीत हो सकती है। मैं आपसे जो-कुछ कहने जा रहा हूँ, वह मैं अपने पुत्रोंसे भी कह चुका हूँ। मेरे अनेक पुत्र हैं और अनेक बच्चे ऐसे हैं जो बचपनसे ही मुझे सौंप दिये गये थे और मैंने जिनका लालन-पालन किया है। अभी कल ही एक ढेढ़ माता-पिताने अपनी बच्चीको[३]मुझे सौंपनेकी इच्छा व्यक्त की है। यह बच्ची पहले [कुछ समय के लिए] मेरे साथ रह भी चुकी है। मैंने उसके पितासे कहा कि बहन लक्ष्मीपर से अपना पूरा दावा उठा लेनेपर ही तुम उसको मेरे पास छोड़ सकते हो। मुझे सौंपे गये सब बच्चोंके माता-पिताओंके साथ मैंने ऐसी शर्त नहीं रखी थी, तथापि मैंने जिनका लालन-पालन किया हैं उन्हें मैं अपनी ही सन्तान-जैसा समझता हूँ। मैं आज विद्यार्थियोंको जो कड़वी सलाह दे रहा हूँ वैसी कड़वी सलाह मैंने अपने पुत्रोंको भी दी है। आप लोग उचित अवसरपर मेरा, अपने माता-पिता तथा समस्त