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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३७८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जिस एकताके लिए हम लोग चेष्टा कर रहे हैं वह एकता बनावटी नहीं दिली होनी चाहिए, उन्हें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जबतक हिन्दू और मुसलमान एक ग्रन्थिमें सदाके लिए बँध नहीं जाते, तबतक जिस स्वराज्यका सुखस्वप्न देखा जा रहा है वह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं हो सकता। अस्थायी सन्धिसे यह काम नहीं सिद्ध हो सकता। पारस्परिक भय भी उसका आधार नहीं हो सकता। यह मेल दो बराबरकी हैसियत रखनेवालोंका मेल होना चाहिए जिसमें दोनों बराबरीकी हैसियतसे मिलते हैं और एक-दूसरेके धार्मिक भावोंका समुचित आदर करते हैं।

यदि 'कुरान' में मुसलमानोंसे कहीं यह कहा गया होता कि वे हिन्दुओंको अपना सहज बरी समझें या हिन्दुओंके धर्मशास्त्रमें ऐसी कोई बात होती जिसके कारण हिन्दू लोग मुसलमानोंको अपना चिरकालिक दुश्मन मानते तो मैं इस तरहके मेलको सर्वथा असम्भव समझता और इस ओरसे सर्वथा निराश हो जाता।

यदि हम लोगोंकी यही धारणा है कि हम तो अतीत कालसे आपसमें लड़ते आये हैं, इसलिए भविष्यमें भी लड़ते ही रहेंगे और हमारी यह लड़ाई तभी बन्द हो सकती है जब ब्रिटेन-जैसी कोई शक्तिशाली सत्ता हमारे बीचमें पड़े और हमें बलपूर्वक एक-दूसरेका गला काटनेसे रोके तो हमें यही कहना पड़ेगा कि हम लोगोंने अपने इतिहासका ठीक तरहसे मनन नहीं किया है। किन्तु हिन्दू या मुस्लिम धर्ममें ऐसी कोई बात नहीं, जिसके आधारपर हम इस तरह की धारणा बना लें। यह सच है कि स्वार्थी पुरोहितों या मुल्लाओंने उन्हें एक-दूसरेसे लड़नेके लिए उभारा है। यह भी सच है कि ईसाई राजाओंकी तरह मुसलमान बादशाहोंने भी इस्लाम धर्मके प्रचारके लिए तलवारकी सहायता ली थी। पर अब वह समय नहीं रहा। यद्यपि वर्तमान युगके माथेपर तरह-तरह तरहकी बुराइयोंका टीका लगा है तो भी जैसे वह आज जबरदस्ती लादी गई गुलामी सहन करनेके लिए तैयार नहीं होगा, उसी प्रकार धर्म प्रचारमें इस तरहका बलात्कार सहन करनेके लिए भी तैयार नहीं होगा। आजका युग विज्ञानका युग है और इस वैज्ञानिक दृष्टिसे हमने जो-कुछ पाया है उसका शायद सबसे प्रभावकारी लाभ यही है। विज्ञानकी इस भावनाने ईसाई तथा इस्लाम धर्मकी अनेक भ्रामक धारणाओंको बिलकुल ही बदल डाला है। इस युगमें एक भी ऐसा मुसलमान नहीं दिखाई देता जो धर्म-प्रचारके हेतु किसी तरहकी ज्यादती या बलात्कारका समर्थन करता हो। इस समय जिन बातोंका प्रभाव मनुष्य-हृदयपर पड़ सकता है उसके मुकाबले तलवारका प्रभाव कुछ नहीं है।

यद्यपि पश्चिममें लोग रक्तपात, धोखेबाजी, दगाबाजी आदिके प्रयोगमें अब भी प्रवीण हैं और उसका धड़ाधड़ प्रयोग करते हैं तो भी समस्त मानव-समाज धीरे-धीरे उन्नतिके पथपर आगे बढ़ता जा रहा है। और यदि भारत आज हिन्दू-मुस्लिम एकताका प्रश्न हल करके अहिंसात्मक असहयोग द्वारा यानी विशुद्ध आत्म-त्यागके सहारे अपनी स्वतन्त्रता स्थापित कर लेगा तो वह संसारको वर्तमान अँधेरेसे एक नया मार्ग दिखला देगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-१०-१९२०