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भाषण : सूरतमें

कानून जिस लोकमतको अभिव्यक्त करता है वह मुझे मान्य नहीं है। लेकिन जबतक इसमें संशोधन नहीं किया जाता तबतक उसके अधीन रहना ही मुझे उचित जान पड़ा और इसलिए मैंने बालकको टीका लगवाया। लेकिन बादमें इसी टीकेका विरोध करनेका प्रसंग आया। दक्षिण आफ्रिकामें हम जेल गये, जेलके कानूनके मुताबिक हमें टीका लगवाना ही चाहिए। तब हमने असहयोग किया, सादर अवज्ञा की। हमने सरकारसे कहा कि वह चाहे तो हमें ज्यादा समयतक जेलमें रख सकती है लेकिन हम टीका नहीं लगवायेंगे। सरकारको आखिरकार यह आदेश देना पड़ा कि यदि हमें इसमें धर्मके आधारपर कुछ आपत्ति है तो हम चाहें तो टीका न लगवायें।

मैंने किस हदतक सहयोग किया है? सरकारकी ओरसे प्रस्तुतकी जानेवाली छोटी-छोटी असुविधाओं को दरगुजर करने और निभा लेनेको मैं सुन्दर धर्म मानता हूँ। मैं न तो इतना भोला हूँ और न इतना पाखण्डी ही जो यह कहूँ कि स्वराज्य-प्राप्तिके बाद सतयुगका प्रादुर्भाव होगा। हमारे स्वराज्य प्राप्त कर लेनके बाद भी पाखण्ड, चोरी और डायरशाहीका दबदबा रहेगा। यह स्वराज्य सतयुगका नहीं बल्कि कलियुगका ही होगा; यह अंग्रेजों और अरबों-जैसा होगा, लेकिन उस समयकी डायरशाही सह्य होगी। सत्ता हमारे हाथमें होगी, इसलिए हममें से ही अधिकांश इसका दुरुपयोग करेंगे अथवा करने देंगे। लेकिन आज जो बात हुई है वह ऐसी बात नहीं है। यह हमारी इच्छाके विरुद्ध किया गया है। वाइसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड अथवा लॉर्ड सिन्हाको अगर हमने नियुक्त किया होता तो वह एक अलग बात होती। हमारा विरोध उनके रंगसे नहीं बल्कि काम करने के ढंगसे है, जिस तरह मेरे साथी दयालजी अथवा कल्याणजी अन्याय करें तो मैं उनका विरोध करूँगा, यहाँतक कि उनके हाथसे दूधतक नहीं लूँगा। भाई एन्ड्र्यूज, मुहम्मद अली और शौकत अली मेरे सहोदर हैं, लेकिन अगर सरकार उन्हें भी वाइसरायके रूप में नियुक्त करे तो यह मुझे स्वीकार्य नहीं होगा, सिर्फ इसलिए कि वे सरकार द्वारा नियुक्त किये जायेंगे। सत्ता हमारी तब हो जब हमें विश्वास हो कि हम लॉर्ड चेम्सफोर्डको भी वाइसराय नियुक्त कर सकते हैं, और विश्वास उठ जानेपर उन्हें हटा भी सकते हैं। आज समस्त हिन्दुस्तान लॉर्ड चेम्सफोर्डको त्यागपत्र देनेके लिए कह रहा है, तथापि वे उस पदपर बने हुए हैं। मैं तो, जिस तरहकी सरकारका मैंने वर्णन किया है, उसीसे सहयोग करना चाहूँगा। इस समय ऐसी सरकार न होनेके कारण मैं उससे असहयोग करना चाहता हूँ।

मैंने सरकारी शासनका लेन-देनका खाता देखा तो यह समझमें आया कि उसने लिया ही लिया है, दिया बहुत कम है। सुधारोंमें भी कुछ दिया नहीं गया, छीना ही गया है। सरकारकी सत्ता मशीनगनपर नहीं बल्कि उसके प्रति हमारे मोहपर टिकी हुई है। ये मोह तीन प्रकारका है। द्विजेन्द्रनाथ ठाकुरने[१] जिन्हें 'माया-मृग' कहा है वे हैं: विधान परिषदोंका मोह, अदालतोंका मोह और शिक्षाका मोह। सम्मानित ओहदों और पदवियों आदिकी बातको तो मैं बिलकुल ही नहीं उठाता, क्योंकि इनको पानेवाले व्यक्ति बहुत ही कम हैं। लेकिन इन तीन प्रकारके मोहोंमें तो हममें

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  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुरके बड़े भाई जिन्हें 'बड़ो दादा' कहा जाता था।