अपने अनुभव और मार्गदर्शनका लाभ पहुँचाना चाहते हैं और यदि इसमें आपको ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जो आपकी अन्तरात्माके बिलकुल विरुद्ध हो, तो मैं आपसे और आपके साथ हस्ताक्षर करनेवाले सज्जनोंसे इन त्यागपत्रोंपर पुनर्विचार करनेकी प्रार्थना करता हूँ। किन्तु यदि दुर्भाग्यसे आप अपने निर्णयको बदलना असम्भव मानें, तो भी आप सभाको अनियमित कार्रवाई करने और गैरकानूनी या मनमाना ढंग अपनानेके लांछनसे मुक्त कर देंगे। और इस पत्रमें आपने अपने निर्णयके जो कारण सूचित किये हैं, उनसे भिन्न किन्हीं अन्य आधारोंपर निर्णय लेनेकी कृपा करेंगे।
मो॰ क॰ गांधी
बॉम्बे क्रॉनिकल, २६-१०-१९२०
२१२. पत्र : भारतके अंग्रेजोंके नाम
मैं चाहता हूँ कि भारतमें प्रत्येक अंग्रेज इस पत्रको देखे और इसपर अच्छी तरह विचार करे।
सबसे पहले तो मैं आपको अपना परिचय दे दूँ। मेरी नम्र रायके अनुसार ब्रिटिश सरकारके साथ अबतक जितना सहयोग मैंने किया है, उतना और किसी भारतीयने नहीं किया होगा। किसी भी मनुष्यको विद्रोह या बगावत करनेकी प्रेरणा देनेवाली कठिन परिस्थितियोंमें रहकर मैंने २९ सालतक लगातार आपके साम्राज्यकी सेवा की है। विश्वास रखिये कि वह सेवा मैंने आपके कानूनों द्वारा नियोजित सजाओंके डरसे या और किसी भी स्वार्थके हेतुसे नहीं की। वह सहयोग स्वतन्त्र और स्वेच्छापूर्ण था और इसी विश्वाससे प्रेरित होकर किया गया था कि ब्रिटिश सरकार जो कुछ कर रही है वह कुल मिलाकर भारतके हित में ही है। इसी विश्वासके कारण मैंने साम्राज्यकी खातिर अपने-आपको चार बार जोखिममें डाला: (१) बोअर-युद्धके समय। उस समय मैं एक आहत-सहायक टुकड़ीका नायक था, इस टुकड़ीकी सेवाओंके बारेमें जनरल बुलरने अपने खरीतेमें विशेष उल्लेख किया था; (२) नेटालमें उठे जुलू-विद्रोहके समय। उस समय भी मेरे अधीन वैसी ही आहत-सहायक टोली थी; (३) पिछले महायुद्धके प्रारम्भमें। उस वक्त भी मैंने ऐसा ही एक दल खड़ा किया था। उसके सिलसिलेमें ली गयी अत्यन्त श्रमपूर्ण तालीमके परिणामस्वरूप मुझे सख्त प्लुरिसीका रोग हो गया था; और अन्तमें (४) दिल्लीमें हुई युद्ध-परिषद्के समय। मैंने लॉर्ड चेम्सफोर्डको सैनिक भरतीमें मदद देनेके बारेमें दिये गये वचनका जी-जानसे पालन करके इस काम के लिए खेड़ा जिलेमें रहकर और लम्बी-लम्बी यात्राएँ करके इतना परिश्रम किया कि उससे मुझे घातक पेचिश हो गई और मरते-मरते मुश्किलसे बचा।