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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/४२७

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पत्र : भारतके अंग्रेजोंके नाम

आप इस शौर्यके आगे भी झुकेंगे। मैं इस समय अपने लोगोंमें उसी शौर्यको जगानेका काम कर रहा हूँ। असहयोगका अर्थ है, त्यागकी शिक्षा। जब हमने देख लिया कि इस देश के आपके शासनमें हम दिन-दिन अधिक गुलामीमें फँसते जा रहे हैं, तब हम आपके साथ और सहयोग किस लिए करें? आज लोग मेरी सलाह मान रहे हैं, सो मेरे नामके कारण नहीं। इस मामलेपर विचार करते समय आप मेरे या अली भाइयोंके नामको अलग रखें। मैं यदि आज लोगोंको मुसलमानोंका विरोध करनेकी सलाह देनेकी मूर्खता करूँ या अली भाई उस प्रकार मुसलमानोंको हिन्दुओंके विरुद्ध भड़कानेमें अपने जादुई बलको काम में लें, तो मुझे और उन्हें दोनोंको जनता तुरन्त ठुकरा देगी। आज लोग बड़ी संख्यामें हमें सुनने को इसलिए चले आते हैं कि हम आपके जुल्म से कराहते हुए लोगोंकी आन्तरिक भावनाओंको वाणी देते हैं। अली भाई भी कलतक आपके मित्र थे, जैसा कि मैं था और अब भी हूँ। मेरा धर्म आपके प्रति मेरे अन्तरमें किसी भी प्रकारकी कटुता रखनेकी मनाही करता है। मेरी कलाईमें जोर हो, तो भी मैं अपना हाथ आपके खिलाफ नहीं उठाऊँगा। मैं अपने कष्टसहनसे ही आपको जीतनेकी आकांक्षा रखता हूँ। अली भाई जरूर उनसे हो सके तो, अपने दीन और देशकी खातिर तलवार उठा लेंगे। परन्तु लोगोंकी भावनाएँ प्रकट करने और उनके दुःखोंका इलाज ढूँढ़नके काममें उन्होंने और मैंने लोगोंके साथ साझा किया है।

आप लोक-भावनाके इस चढ़ते हुए ज्वारको दबा देनेके उपायकी तलाश में हैं। मैं आपको बता दूँ कि इसका एक ही उपाय है और वह यह कि रोगके कारणोंको ही ढूँढ़कर दूर कर दिया जाये। अब भी बाजी आपके हाथमें हैं। भारतके साथ किये गये घोर अन्यायोंके लिए आप प्रायश्चित्त कर सकते हैं। आप मि॰ लॉयड जॉर्जसे उनके वचनका पालन करा सकते हैं। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि उन्होंने जो-कुछ किया है, उससे निकलने की कितनी ही खिड़कियाँ उन्होंने स्वयं ही रख ली हैं। आप वाइसराय महोदयको अपने पदसे निवृत्त हो जानेको मजबूर कर सकते हैं और वह जगह योग्य आदमीको दी जा सकती है। आप सर माइकेल ओ'डायर और जनरल डायर दोनोंके सम्बन्धमें अपने विचार भी बदल सकते हैं। लोगोंके माने हुए और उनके द्वारा चुने हुए सब मतोंके नेताओंकी एक परिषद् बुलवाकर भारतवासियोंकी इच्छानुसार स्वराज्य प्रदान करनेका रास्ता निकालनेके लिए सरकारको विवश कर सकते हैं।

परन्तु जबतक आप यह न समझ लें कि प्रत्येक भारतीय सचमुच आपकी बराबरीका और आपका भाई है, तबतक आपसे यह नहीं होगा। मैं आपसे मेहरबानीकी याचना नहीं करता; मैं तो केवल मित्रके नाते एक कठिन प्रश्नका सम्मानित हल आपको सुझा रहा हूँ। दमन और कठोरताका दूसरा रास्ता तो आपके लिए खुला ही है। मैं आपको चेतावनी देता हूँ कि यह उपाय बेकार साबित होगा। उसका आरम्भ तो हो चुका है। सरकारने पानीपतके दो बहादुर आदमियोंको स्वतन्त्र मत रखने और प्रकट करनेपर कैद कर लिया है। एक अन्य व्यक्तिपर लाहौर में मुकदमा चल रहा है। अयोध्यामें एक और आदमी कैद हुआ है। तीसरेका फैसला होनेवाला है। आपको देखना चाहिए कि आपके आसपास क्या हो रहा है।