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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारा आन्दोलन तो दमन और सख्तीकी आशा रखकर ही शुरू हुआ है। मैं आदरपूर्वक आपसे दोनोंमें से अच्छा रास्ता अपनाने और जिस भारतका आप नमक खा रहे हैं, उसके लोगोंका पक्ष लेनेका अनुरोध करता हूँ। उनकी आकांक्षाओंको दबाने का प्रयत्न करना इस देशसे बेवफाई करनेके बराबर है।

आपका विश्वस्त मित्र,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२०

 

२१३. "दलित" जातियाँ

स्वामी विवेकानन्द 'पंचमों'को[१] "दलित जातियाँ" कहा करते थे। स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिया गया यह विशेषण अन्य विशेषणोंकी अपेक्षा निस्सन्देह अधिक सटीक है। हमने उनका दलन किया है और परिणामतः स्वयं ही पतनके गर्तमें जा गिरे। आज जो "इस साम्राज्यमें हमारी स्थिति अछूतों-जैसी हो गई है" सो गोखलेके शब्दोंमें, बदलेमें हमारे प्रति न्यायी ईश्वर द्वारा किया गया न्याय ही है। एक व्यक्तिने[२]मुझे एक बड़ा करुण पत्र लिखा है जो अन्यत्र प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें उसने क्षुब्ध होकर मुझसे पूछा है कि मैं उन लोगोंके लिए क्या कर रहा हूँ। मैंने उक्त पत्र, पत्र-लेखक द्वारा दिये गये शीर्षकसे ही प्रकाशित किया है। हम अंग्रेजोंसे अपने खून से रँगे हाथ धोनेको कहें, उससे पहले क्या हम हिन्दुओंका यह कर्त्तव्य नहीं है कि स्वयं अपने दामनके दाग मिटा लें? यह समयपर पूछा गया एक सम्यक् प्रश्न है। और अगर किसी गुलाम देशके किसी व्यक्तिके लिए अपने-आपको गुलामीसे छुटकारा दिलाये बिना दलित जातियोंके लोगोंको उनकी गुलामीसे छुटकारा दिलाना सम्भव होता तो मैं आज ही यह काम कर गुजरता। लेकिन यह असम्भव है। गुलामको तो सही काम करनेकी भी छूट नहीं होती। उदाहरणार्थ, विदेशी मालका आयात बन्द कर देना मेरे लिए उचित काम है, लेकिन मुझे वैसा करनेका अधिकार नहीं है। इसी तरह मौलाना मुहम्मद अलीके लिए टर्की जाकर तुर्कोंसे व्यक्तिशः यह कहना बिलकुल सही था कि उनके न्यायसम्मत संघर्षमें भारत उनके साथ है। लेकिन उन्हें ऐसा करनेकी छूट नहीं थी। अगर हमारी कोई सच्ची राष्ट्रीय विधान सभा होती तो मैं [सवर्ण] हिन्दुओंकी धृष्टताका उत्तर अवश्य देता——इस तरह कि केवल दलित जातियोंके उपयोगके लिए ही खास कुएँ खुदवाता जो आजके कुओंसे बेहतर होते और विशेष रूपसे उन्हींके

  1. अछूत जातियाँ।
  2. एस॰ एम॰ माइकेल; देखिए "सत्याग्रह और दलित जातियाँ", १७-११-१९२० ।