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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जबतक यह जालिम सल्तनत हमारी छातीपर बैठी है, तबतक आप सब भाइयों और बहनोंको किसी प्रकारका शृंगार करनेका अधिकार नहीं। जबतक भारत स्वतन्त्र नहीं होता, मुसलमानोंके घाव नहीं भरते, तबतक हमारे लिए फकीरी आवश्यक है। हमें अपने ऐश-आरामको अपनी शोकाग्निमें जलाकर भस्म कर देना चाहिए। मैं आपसे दीन वाणी में यह माँगता हूँ कि भोग-विलास तजकर कठिन तपश्चर्या कीजिये और हृदय तथा मनको पवित्र रखिये।

पचास वर्ष पहले हमारी सब बहनों—हिन्दू मुसलमान तमाम स्त्रियों—के घरोंमें पवित्र चरखा चलता था और प्रत्येक स्त्री हाथके बने सुतका कपड़ा काममें लेती थी। मैं आप बह्नोंसे कहना चाहता हूँ कि हमने जबसे स्वदेशी धर्म छोड़ा, तबसे हमारा अधःपतन शुरू हुआ, हमपर गुलामीका थोपा जाना आरम्भ हुआ। हमारे देशमें जगह-जगह लोग भूखों मर रहे हैं, वस्त्रोंके बिना नग्न फिर रहे हैं। ऐसी स्थितिमें प्रत्येक बहनसे मेरी प्रार्थना है कि आप कमसे कम एक घंटा भी भारतके नामपर सूत कातिये और देशको वह सूत अर्पण कीजिये। आपको फिलहाल बारीक कपड़ा मिलना कठिन है। परन्तु आप बारीक सूत कातने लगेंगी, तो महीन कपड़ा भी मिलेगा। परन्तु जबतक देश परतन्त्र दशा में है, तबतक बारीक कपड़ा हमारे लिए हराम होना चाहिए। क्योंकि महीन सूत कातनेमें बहुत समय लगता है और भारत में आज एक मिनटका भी मूल्य है।

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मैं डाकोर-अहमदाबादमें रुपयेकी माँग कर चुका हूँ। पूनामें भी परसों ही माँग कर आया हूँ। कुछ बहनोंने, छोटी-छोटी लड़कियोंने अंगूठियाँ, चूड़ियाँ, नाककी नथें, गलेके हार उतारकर दे दिये। मैं आपके दिलोंमें जो फकीरी जाग्रत करने आया हूँ, वह जाग्रत कर सका हूँ, तो आपको अपने सारे आभूषण देशके लिए उतार देने में संकोच न होना चाहिए। इससे मिलनेवाले रुपयेका उपयोग श्री गंगाधरराव शिक्षा और स्वदेशी के लिए करेंगे। आप बहनें जो भी नकद रुपया अथवा द्रव्य देना चाहती हैं, तो जिस भावसे आप इस मन्दिरमें रुपया चढ़ाती हैं, उसी भावसे देशकार्यके लिए दीजिये। भारत इस समय कसाईके हाथोंमें गरीब गायकी तरह है और इस भारत-रूपी गायको छुड़वाना मेरा और आपका काम है और गायको छुड़वाने के लिए दान करने में देव मन्दिर में दान करनेके बराबर ही पुण्य है।

आखिरी भीख आपसे यह माँगता हूँ कि जो काम मैं, शौकत अली और गंगाधर राव कर रहे हैं, उस कामके सफल होने के लिए आशीर्वाद दीजिये। में यह भी कह दूं कि मैं यह नहीं चाहता कि कोई बहन शर्मके मारे जेवर उतारकर दे दे। आपके दिल में यह बात पैदा हो जाये कि यह दान करना आपका कर्त्तव्य है, यह एक पुण्यकार्य है, तो ही दान दीजिये। ईश्वर आपको पवित्रता, साहस और देशके लिए यज्ञ करनेकी भावना प्रदान करें।

[गुजराती से]
नवजीवन, २८-११-१९२०