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२५५. भाषण : स्त्रियोंकी सभा, बेलगाँवमें

८ नवम्बर, १९२०

प्रातःस्मरणीय बहनो,

इस पवित्र मन्दिरमें[१]आप सब बहनोंके दर्शनोंसे मैं कृतार्थ हुआ हूँ। मुझे अधिक आनन्द तो इसलिए हो रहा है कि आपने मेरे भाई शौकत अलीसे भी मिलनेकी उत्सुकता दिखाई है। हम सब थके हुए थे और जरा आराम ले रहे थे, परन्तु जब मैंने सुना कि आपकी इच्छा है कि शौकत अलीको भी लाया जाये, तो मैंने उन्हें बुलाया। इस सद्भावमें मैं भारतकी सिद्धि पाता हूँ। क्योंकि मुझे मालूम है कि जबतक हमारी हिन्दू महिलाएँ मुसलमानोंको भाईके समान नहीं समझेंगी, तबतक भारतके बुरे दिन नहीं मिटेंगे। मैं इस मन्दिरमें बैठकर आपकी धार्मिक कल्पनाको कोई धक्का नहीं पहुँचाना चाहता। मैं सनातनी हिन्दू धर्मवाला हूँ। परन्तु मैंने हिन्दू धर्मसे सीखा है कि किसी भी धर्मसे घृणा या तिरस्कार नहीं करना चाहिए। मैंने यह भी देखा कि जबतक हम सब पर-धर्मवालों और पड़ोसियोंके साथ प्रेम नहीं रखेंगे, तबतक देशका कल्याण साधना असम्भव है। मैं आपसे यह कहने नहीं आया कि आप मुसलमानों या अन्य धर्मवालोंके साथ रोटी-बेटीका व्यवहार करने लगें। परन्तु मैं यह कहने जरूर आया हूँ कि हमें प्रत्येक मनुष्यके साथ प्रेम रखना चाहिए। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि अपने बाल-बच्चोंको पर-धर्मियोंसे प्रेम रखना सिखाइये।

मैं आपसे यह भी माँगता हूँ कि आप भारतकी राष्ट्रीय स्थिति समझ लें। यह ज्ञान प्राप्त करनेके लिए कोई भारी शिक्षा पाने या बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़नेकी जरूरत नहीं। मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि हमारी सरकार राक्षसी सरकार है। पहले जैसा रावणराज्य था, वैसी ही स्थिति इस वक्त है; क्योंकि हमारी सरकारने मुसलमान भाइयोंकी भावनाओंको बड़ा धक्का पहुँचाया है, पंजाबमें स्त्री-पुरुष और बच्चोंपर भयंकर अत्याचार किये हैं और इतना करके भी सरकार अपनी भूल स्वीकार नहीं करती, पश्चात्ताप नहीं करती; उलटे हमसे अत्याचारोंको भूल जानेको कहती है। इसलिए मैं इस सरकारको राक्षसी कहता हूँ। और सीताजीने जैसा असहयोग रावण से किया, रामचन्द्रजीने जैसा असहयोग रावणके प्रति किया, वैसा ही असहयोग हमारे स्त्री-पुरुषोंको सरकारके विरुद्ध करना है। रावणने सीताजीको लालच दिये, नाना प्रकारके पकवान भेजे, परन्तु सीताजीने उनकी उपेक्षा की और रावणके पंजेसे छूटनेके लिए भारी तपस्या की। जबतक सीताजी रावणके पंजेसे नहीं छूटीं तबतक उन्होंने किसी वस्त्राभूषण या अलंकारसे अपने शरीरका श्रृंगार नहीं किया। रामचन्द्रजी और लक्ष्मणजीने बड़ा इन्द्रियदमन किया, फल-फूल, कन्द-मूल खाकर संयमपूर्वक दिन बिताये। दोनों भाइयोंने कठिन ब्रह्मचर्य-व्रतका पालन किया। आपसे मैं कहना चाहता हूँ कि

  1. मारुति मन्दिरमें।