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२६७. गुजरात महाविद्यालय

मुझे गुजरात महाविद्यालयका उद्घाटन करते समय जिस असमंजसका अनुभव हुआ वैसा कभी नहीं हुआ था।[१]मैं जानता था वह एक ऐसी मौन और शान्तिपूर्ण क्रान्तिके आरम्भका सूचक है जिसे शायद मेरे श्रोतागण समझ न सकें अथवा पसन्द न कर पायें। मैंने यह भी महसूस किया कि यदि इस राष्ट्रीय महाविद्यालयको इमारतों या शैक्षणिक साधनोंकी सम्पन्नताकी बाह्य कसौटीपर परखा गया तो वह खरा नहीं उतरेगा। किन्तु सरकार, जो अन्ततोगत्वा हमारी सारी भौतिक सम्पत्तिकी स्वामिनी होनेका दावा रखती है, चूँकि राष्ट्रकी प्रतिनिधि नहीं रही और जनताका उसपर विश्वास भी नहीं रहा, इसलिए राष्ट्रीय महाविद्यालयकी इमारत बना पाना कठिन काम था। फिर भी नये महाविद्यालयमें ऐसी सम्भावनाएँ हैं, जिनकी आज कल्पना कर सकना सम्भव नहीं है। कौन कह सकता है कि यह राष्ट्रीय स्वतन्त्रताका बीज ही सिद्ध हो जाये। इसकी सफलता शिक्षकों और विद्वानोंके सम्मिलित प्रयत्नोंपर निर्भर रहेगी। मुझमें कोई साहित्यिक योग्यता नहीं है; फिर भी मैंने कुलपतिका पद स्वीकार करके उद्घाटन-उत्सव सम्पन्न किया; क्योंकि मैं असहयोगको राष्ट्रीय पुनर्निर्माणका एकमात्र उपाय मानता हूँ और मेरा विश्वास है कि महाविद्यालयका शिक्षकवर्ग और सीनेटके सदस्य भी सचमुच इसी विश्वाससे ओतप्रोत हैं। मैंने अपना काम प्रार्थनापूर्ण भावसे नम्रतापूर्वक शुरू किया है। भगवान् नये विद्यापीठ और महाविद्यालयका संरक्षण करें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-११-१९२०

 
  1. देखिए "भाषण : गुजरात महाविद्यालयके उद्घाटनपर", १५-११-१९२०