८. प्रचार-मण्डल
मैं इस बातको गहराईके साथ महसूस करता हूँ कि समय-समयपर न केवल ब्रिटेनमें बल्कि अमेरिकामें भी हमें वहाँके लोगोंको इस बातकी पूरी जानकारी देते रहना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं। यह विचार लोकमान्य तिलकका था और यही विचार लाला लाजपतरायका भी है। मिस्री राष्ट्रीय आन्दोलनकी एक उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि विदेशोंमें अपने पक्षका प्रचार करनेके लिए उन्होंने व्यापक प्रबन्ध किया था। इस वर्ष अपने इंग्लैंड प्रवासमें मैंने मिस्री और आयरिश राष्ट्रवादियोंसे बातचीत की। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि जबतक साथ-साथ विदेशोंमें प्रचार नहीं होता तबतक कोई परिणाम नहीं निकलेगा, प्रचार करनेसे ही परिणाम निकल सकता है। इसलिए मैं निःसंकोच सिफारिश करता हूँ कि इस देशमें असहयोगके क्षेत्रमें की जानेवाली अपनी गतिविधियोंके साथ-साथ तुरन्त दो शक्तिशाली प्रचार-मण्डलोंकी भी स्थापना होनी चाहिए। एक मण्डल ब्रिटेनमें स्थापित करना चाहिए और दूसरा न्यूयॉर्कमें। मैं इसके साथ १५ नवम्बर, १९१९ के एक मिस्री परिपत्रकी नकल नत्थी कर रहा हूँ ताकि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सदस्योंको यह मालूम हो जाये कि मिस्री राष्ट्रवादियों द्वारा किस प्रकारका प्रचार-कार्य किया गया है।
अन्तमें मैं एक या दो शब्द कहना चाहूँगा जो मुझे इस टिप्पणीके प्रारम्भमें ही कह देने चाहिए थे। पदवियोंके बहिष्कार आदिके प्रश्नपर रिपोर्टमें दिया गया हिदायतोंका मसविदा ठीक तो है किन्तु मेरे विचारमें निम्नलिखित आधारपर उक्त हिदायतोंमें कुछ हिदायतें और जोड़ देनी चाहिए :
- (१) अखिल भारतीय समाचारपत्रोंको भविष्यमें अपने सभी लेखोंमें पदवियोंका उल्लेख करना बिलकुल छोड़ देना चाहिए और पदवीधारियों का उल्लेख उनके नामोंके साथ श्री और श्रीमती लगाकर ही करना चाहिए।
- (२) भविष्यमें किसी भी भारतीय पत्रको अपने स्तम्भोंमें किसी प्रकारकी भी पदवियोंकी सूची या सरकार द्वारा की गई नामजदगियोंको प्रकाशित नहीं करना चाहिए।
- (३) भारतीय जनता पदवीधारियोंको सम्बोधित करते समय अखबारोंकी तरह पदवियोंका उल्लेख करना छोड़ दे।
वि॰ झ॰ पटेल
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन० ७२६६) की फोटो-नकलसे।