५. कौंसिलोंका बहिष्कार।
मेरा विचार है कि हमें अपनी सारी कोशिशें और ताकत भविष्यमें कुछ समयतक कौंसिलोंके बहिष्कारको यथासम्भव सम्पूर्ण बनानेपर केन्द्रित कर देनी चाहिए। हमें अपनी शक्ति दिखा देनी चाहिए और ऐसा हम अपने कार्यक्रमके किसी मुद्देपर अपने प्रयत्न केन्द्रित करके ही कर सकते हैं। असहयोग आन्दोलनकी जड़ जमाने, उसे उगाने, विकसित करने तथा अन्तमें सफल बनानेके लिए हमें इस प्रकार कार्य करना चाहिए जिससे निकट भविष्यमें हमारी गतिविधियोंका कुछ स्पष्ट परिणाम दृष्टिगोचर हो। ऐसा हम सर्वोत्कृष्ट प्रकारसे तभी कर सकते हैं जबकि हम प्रारम्भमें एक ही मुद्देको लें और उसके लिए हम यथासम्भव सम्पूर्ण रूपसे कार्य करें। मेरा यह विचार है, इसलिए मैंने ऊपर यह सुझाव दिया है कि विद्यालयों तथा न्यायालयोंका बहिष्कार कुछ चुने क्षेत्रोंमें ही किया जाये ताकि हम कौंसिलोंके बहिष्कारको यथासम्भव सम्पूर्ण बनानेके लिए अधिकसे-अधिक प्रयत्न कर सकें। इसलिए मैं इस मुद्देपर रिपोर्टमें दी गई हिदायतोंमें कुछ और जोड़नेके लिए निम्नलिखित सुझाव देना पसन्द करूँगा : (१) सभी चुनाव क्षेत्रोंमें तुरन्त सार्वजनिक सभाएँ होनी चाहिए और उम्मीदवारोंसे अपने नाम वापस लेने के बारेमें कहनेके लिए प्रस्ताव पास होने चाहिए। (२) चुनावोंके समाप्त हो जानेपर भी चुने गये उम्मीदवारोंपर सदस्यतासे त्यागपत्र देनेके बारेमें जोर डालनेके लिए सार्वजनिक सभाएँ तथा शिष्टमण्डल संगठित कर निरन्तर प्रचार होना चाहिए। (३) किसी भी चुनाव-क्षेत्रमें जिन मतदाताओंके मतोंसे कोई सदस्य चुना गया हो उनके पास बार-बार जाकर उनसे यह कहें कि वे सदस्यपर त्यागपत्र देनेके लिए जोर डालें।
६. मतदाताओंसे हस्ताक्षर लेनेके लिए रिपोर्टमें दिये गये फार्ममें मैं एक परिवर्तन सुझाना चाहता हूँ। अन्तिम वाक्य हटा देना चाहिए और उसके स्थानपर निम्नलिखित शब्द जोड़ देने चाहिए: "हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि जबतक विधान मण्डलोंकी स्थापना ऐसे संविधानके अन्तर्गत नहीं होती जिसका अन्तिम लक्ष्य 'स्वराज्य' यानी पूर्ण रूप से उत्तरदायी सरकार हो तबतक हम किसी भी विधानमण्डलमें अपना प्रतिनिधित्व नहीं चाहते। कारण केवल ऐसे विधान मण्डलोंके द्वारा ही हम 'खिलाफत', 'पंजाब' और इसी प्रकारके अन्य मामलोंमें न्याय प्राप्त कर सकेंगे"।
७. विदेशी मालका बहिष्कार।
मैं इस विचारसे सहमत नहीं हो सकता कि यह धारा एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रक्षेप हैं। जिसे गलतफहमीके कारण प्रक्षिप्त कर दिया गया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उसकी शब्द-रचना अतिव्याप्तिसे दूषित है और पूर्ण सम्भावना है कि कांग्रेसकी आगामी बैठकमें इसपर पुनर्विचार किया जाये। इस बीच प्रत्येक असहयोगीका कर्त्तव्य है कि वह इस सिफारिशपर, जहाँतक व्यावहारिक रूपसे सम्भव हो वहाँतक, अमल करे। शायद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी प्रारम्भमें ब्रिटेनमें बने कुछ विशिष्ट मालके बहिष्कारकी ही सिफारिश करे।