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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परन्तु [बनारस] हिन्दू विश्वविद्यालयकी रक्षा की। पहली बातका मेरा यह जवाब है कि यदि सचाईके साथ हिन्दू मुसलमानोंकी मदद करते हैं तो ईश्वर जो मनुष्यके दिलको देखता है, मुसलमानोंके दिलसे दुर्भावको समाप्त कर देगा। और यह कहना कि हिन्दू विश्वविद्यालयके विद्यार्थी पढ़नाvछोड़कर बाहर नहीं आये इससे उस विश्वविद्यालयकी रक्षा हुई है, ठीक नहीं है। यदि हिन्दू हिम्मत नहीं दिखाते तो क्या मुसलमानोंको भी कायर बन जाना चाहिए? मालवीयजीके लिए मेरे मनमें बड़ा आदरभाव है किन्तु जबतक उनके विश्वविद्यालयका कुछ भी सम्बन्ध सरकारसे बना हुआ है, मैं चाहता हूँ कि उसमें एक भी विद्यार्थी न रहे। मैं चाहता हूँ कि देशकी सभी मौजूदा संस्थाएँ राष्ट्रीय संस्थाएँ बन जायें। उन्होंने श्री हसन इमामके साथ हुई एक निजी बातचीतका[१] उल्लेख किया जिसमें इमाम साहबने उनसे पूछा था कि क्या असहयोगका अहिंसात्मक स्वरूप अहिंसात्मक बना रहेगा। मैंने कहा कि मैं तो अरसेसे यही कहता आ रहा हूँ। तब फिर श्री हसन इमामने शिकायत की कि विद्यार्थियोंने उनपर शर्म-शर्मके नारे कसे और गुस्ताखीका बर्ताव किया था। [ऐसा करना ठीक नहीं है।] मेरा जनतासे अनुरोध है कि जो लोग हमसे भिन्न मत रखते हैं हमें उनके विचारोंके प्रति सहिष्णुता रखनी चाहिए और हमें उनके साथ ऐसे ढंगसे व्यवहार नहीं करना चाहिए कि हमारे उद्देश्यको प्रगतिमें बाधा पड़े। इसके बाद महात्माजीने असहयोग कार्यक्रमकी तफसील सामने रखते हुए कहा कि यदि आप विदेशी चीजोंका इस्तेमाल छोड़ दें तो केवल इसीसे स्वराज्य मिल जाये। उन्होंने चरखेके घर-घर प्रवेश और उसके उपयोगपर बहुत बल दिया और कहा कि हमें इस शैतान-जैसी सरकारसे जो हमारे अधिकार और स्वतन्त्रताको कुचलने के लिए कटिबद्ध है, कुछ सरोकार नहीं रखना चाहिए। इसके बाद उन्होंने कोषके लिए अपील की और कहा कि मुसलमानोंकी जिम्मेदारी दोगुनी है क्योंकि उनको [हाल हीमें बाँकीपुरमें स्थापित] स्वराज्य सभा और फिर स्मर्नाके पीड़ितोंकी राहतके लिए भी देना है।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ८-१२-१९२०
 
  1. पटना में।