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भाषण: आरामें ७३

ही हो उठा। मैंने ईश्वरको इस बातके लिए धन्यवाद दिया कि में उसकी कृपासे तैयबजी परिवारके[१] सम्पर्क में आया।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

५१. भाषण: आरामें

४ दिसम्बर, १९२०

महात्मा गांधी कुर्सीपर बैठे-बैठे ही बोले। उन्होंने कहा कि मुझे अपने सामने आराके लोगोंको इतनी बड़ी संख्यामें आया देखकर बड़ी ही खुशी हुई है; परन्तु यह देखकर दुःख भी होता है कि आप लोग सभामें अनुशासित ढंगसे[२] काम नहीं कर पा रहे हैं। आप लोगोंने इतना ज्यादा शोर किया कि आधा घंटा तो लोगोंको चुप करनेमें ही लगा देना पड़ा। यदि आप अपनेको अनुशासित और नियंत्रित नहीं कर सकते तो फिर आप एक सालमें स्वराज्य हासिल करनेकी आशा कैसे कर सकते हैं? स्वराज्य पानेकी यह पहली अनिवार्य शर्त है। आगे बोलते हुए महात्माजीने कहा कि शाहाबादमें कुछ बरस पहले जो दंगे हुए थे, उन्हें मैं भूला नहीं हूँ और मुझे यह भी मालूम है कि उसमें हिन्दू-मुसलमान दोनोंका ही कुछ-न-कुछ कसूर था। हिन्दू-गो-रक्षा करना चाहते थे परन्तु जो तरीका उन्होंने अपनाया वह उस कामके लिए उपयुक्त नहीं था। इसलिए दोनोंमें से किसीको उससे कोई लाभ तो हुआ ही नहीं, सरकारको स्थितिसे लाभ उठाकर हिन्दुओंको जेलमें ठूँसनेका मौका मिल गया। मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आपको अपने मतभेद आपसमें तय कर लेने चाहिए। हिन्दू-मुस्लिम एकताकी बड़ी जरूरत है। एकता दिखावटी नहीं, हृदय और आत्मासे होनी चाहिए। यदि आप इस्लामको खतरेसे बचाना चाहते हैं, पंजाबके अन्यायका परिमार्जन चाहते हैं और स्वराज्य हासिल करना चाहते हैं तो यह सब आपसी सहयोगसे ही हो सकता है। एक संन्यासीने मुझसे पूछा था कि क्या आपका यह विश्वास है कि खिलाफतके प्रति की गई गलतीके सुधार दिये जाने के बाद मुसलमान आपका साथ देंगे? दूसरी ओर कुछ मुसलमानोंकी शिकायत है कि मैंने अलीगढ़ कालेज नष्ट कर दिया

  1. श्रीमती मजहरुल हक और श्रीमती हैदरी दोनों ही तैयबजी-परिवार की थीं।
  2. आरामें इतनी बड़ी सभा पहले कभी नहीं हुई थी और कामपर तैनात स्वयंसेवक भीडको सँभाल नहीं पाये।