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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहिए। कोषका उपयोग स्वराज्य, स्वदेशी और राष्ट्रीय स्कूलोंमें होगा। हमने पटनामें एक स्वराज्य सभा स्थापित की है जिसके अध्यक्ष श्री मजहरुल हक और मन्त्री बाबू राजेन्द्रप्रसाद हैं। सभाका खर्च कोषसे चलेगा और उसका तिमाही हिसाब पेश किया जायेगा। नागपुरमें कुछ ऐसे लोगोंने जिन्हें मैं नहीं जानता, मेरे नामसे चन्दा इकट्ठा कर लिया। नेताओंसे मेरा अनुरोध है कि वे इकट्ठा किये गये जनताके धनका हिसाब दें। मैं जानता हूँ कि कई जगहोंमें कोई हिसाब नहीं दिया गया है। (यहाँ मंचके उत्तरकी ओर शोर हुआ) श्री गांधीने कहा कि कुछ शोर हो रहा है; शोर नहीं होना चाहिए। आप लोगोंको अपनी आवाजपर काबू रखना चाहिए और शोर नहीं करना चाहिए। स्वयंसेवकोंको अपना कर्त्तव्य मालूम होना चाहिए और तत्परतासे उसका पालन करना चाहिए। एक बड़ा साम्राज्य आपके विरोधमें है――आपको उसके वार झेलने हैं। सिरपर हवाई जहाज मँडराते हों, बम फेंके जा रहे हों और गोलियाँ बराबर बरस रही हों, तब भी आपको शान्त रहना है। मैंने यह भी देखा है कि यहाँ हिन्दुओं और मुसलमानोंमें परस्पर सहिष्णुताकी भावना नहीं है। इस सभाका प्रबन्ध सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। यदि स्वयंसेवक अपने आपको प्रभावशाली नहीं बनाते तो स्वराज्य हासिल नहीं होगा। उन्हें सीखना चाहिए कि संख्या कम होनेपर भी काम किस तरह ठीकसे किये जा सकते हैं। मातृभूमिको सेवा ईमानदारी और श्रमके बिना नहीं हो सकती। पवित्रता जरूरी है। हृदयकी शुद्धता जरूरी है। त्याग करना सच्चे दिलवालेका काम है। आप इस्लामकी संकटसे रक्षा करना और पंजाबके अत्याचारोंके प्रति न्याय कराना चाहते हैं पर अपने प्रति सच्चे हुये बिना आप यह सब नहीं कर सकते।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, १०-१२-१९२०
 

५४. भाषण: छपरामें[१]

६ दिसम्बर, १९२०

इसके बाद महात्मा गांधीने कुर्सीपर बैठे हुए ही भाषण दिया। उन्होंने कहा कि आज भारतके सामने ऐसी परिस्थिति है कि मुझे आपसे कुछ कहना और मदद माँगना जरूरी हो गया है। मुझे खुशी है कि श्री जकरिया हाशमी और बाबू बिन्देश्वरीप्रसादने वकालत छोड़ दी है। मैं इस कामके लिए उन्हें बधाई देता हूँ। में महसूस करता हूँ कि अंग्रेजी पढ़े लोग ही हमारी आजकी परेशानियोंके सबब हैं। मैं स्वीकार करता हूँ कि उन्होंने कुछ सेवायें भी की हैं, किन्तु वे जिस हानिके उपकरण बने हैं वह उनके हाथों प्राप्त लाभसे बहुत ज्यादा है और इसलिए उनकी अच्छाइयोंपर जोर

  1. बिहारका एक शहर।