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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि उनमें तलवार खींचनेकी शक्ति और सामर्थ्य नहीं है किन्तु उनके पास सारी शक्तियोंका एक भंडार अवश्य है और वह है आत्माकी शक्ति। दूसरोंके लिए, किसी एक उद्देश्यके लिए, सम्मानके लिए, स्वतन्त्रता और देशके लिए प्राणोत्सर्ग करनेकी क्षमताका होना आत्मबलका द्योतक है। एक बच्चा भी अपने पितासे कह सकता है कि मैं चाहे कुचल दिया जाऊँ, चाहे मार डाला जाऊँ, किन्तु में अपनी आत्माके विरुद्ध काम नहीं करूँगा। यह शक्ति तो हम सभीमें हो सकती है और फिर जमींदार या बागान मालिक कोई भी क्यों न हो दमन नहीं कर सकते। हिंसाका सहारा लेते ही असफलता सामने आ जायेगी; परन्तु यदि हम उससे पूरी तरह बचे रहे और पूरी तरह आत्मबलपर ही निर्भर रहे तो हमें कोई भी कुचल नहीं सकता। इसलिए एकमात्र अस्त्र असहयोग है। मैं आपसे सरकारको सब प्रकारका सहयोग और मदद देना बन्द करनेको कहूँगा। हमें न तो किसी तरहकी मदद या सहयोग देना चाहिए, न लेना चाहिए। प्रशासनको वर्तमान व्यवस्थाको सुधारना पड़ेगा; यदि वह सुधरती नहीं है तो उसे समाप्त ही होना पड़ेगा। सभी धर्म ग्रन्थ ‘गीता’, ‘रामायण’, ‘कुरान’, ‘बाइबिल’ शिक्षा देते हैं कि दानवों और देवताओंमें परस्पर कोई सहयोग नहीं हो सकता; साधुओं और शैतानोंमें मंत्री नहीं हो सकती, न वे परस्पर मदद दे ले सकते हैं। यदि हम महसूस करते हैं कि हमारी सरकार दानवी है तो उससे सहयोग बन्द करना और उसे मदद देनेसे इनकार करना हमारा कर्तव्य है। लीगने अनुरोध किया है कि वकील वकालत बन्द कर दें, खिताबयाफ्ता खिताब छोड़ दें और सभी लोग अदालतों, स्कूलों और कालेजोंका बहिष्कार कर दें। मैं तो आपसे अपने झगड़े पंचायतोंके सामने तय करनेको कहूँगा।

गांधीजीने आगे बोलते हुए कहा:

जहाँतक स्कूलों और कालेजोंके बहिष्कारका सम्बन्ध है, वयस्क विद्यार्थियोंको स्कूल और कालेज छोड़ देने चाहिए। और अभिभावकोंका यह कर्त्तव्य है कि वे अपने छोटे बच्चोंको प्राथमिक स्कूलोंसे भी उठा लें। यदि विद्यार्थी पत्थर तोड़ेंगे तो भी वह [इस शिक्षासे] अच्छा रहेगा। मेरा यह कहना नहीं है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बिलकुल ही खराब है; वास्तवमें मेरा अभिप्राय यह है कि हमें सरकारके दोषपूर्ण हाथोंसे शिक्षा नहीं लेनी चाहिए। हम शैतानसे ‘गीता’ भी नहीं पढ़ सकते। उनकी देख-रेखमें पढ़ना पाप है। विद्यार्थियोंको [स्कूल और कालेज] छोड़ देने चाहिए; माननीय पण्डित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित हिन्दू विश्वविद्यालयसे भी उन्हें हट जाना चाहिए। जलते हुए घरके बाहर आ जाना ही अच्छा है। आपको यह खुशखबरी देते हुए मुझे हर्ष होता है कि इसी अहाते में एक राष्ट्रीय विद्यालय खोला जायेगा। आशा है कि सभी सज्जन अपने बच्चे वहाँ भेजेंगे। स्वराज्यमें भी हमें दूसरी भाषाके माध्यमसे शिक्षा नहीं लेनी चाहिए। में शिक्षकों और अध्यक्षसे अनुरोध करूँगा कि धर्मात्मा तथा योग्य पंडित और मौलवी, हिन्दू और मुसलमान, धार्मिक शिक्षा देनेके लिए नियुक्त किये जायें और विद्यार्थियोंको शारीरिक श्रमकी भी शिक्षा दी जाये। उन्हें सूत कातने और कपड़ा तैयार करनेकी भी शिक्षा दी जानी चाहिए। अंग्रेजी अनिवार्य