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भाषण: छपरामें

रूपसे दूसरी भाषाकी तरह रखी जाये। मुझे विश्वास है कि माता-पिता प्राथमिक और माध्यमिक सभी स्कूलोंसे अपने बच्चे उठा लेंगे।

हमें कौंसिलोंका बहिष्कार करना चाहिए। हमें न तो वोट देने चाहिए, न उम्मीदवार बनकर खड़े होना चाहिए। यदि कोई वहाँ आपकी मददसे जाता है तो वह अपनेको आपका प्रतिनिधि मानने लगेगा। मतदाताओंको किसी भी सदस्यके पास किसी भी अन्यायपूर्ण कामके सम्बन्धमें राहत पाने के लिए नहीं जाना चाहिए।

किसी भी व्यक्तिको सेनाके लिए अपना नाम नहीं देना चाहिए।

स्वदेशी चीजोंका प्रयोग करना बहुत जरूरी है। मेरी रायमें बिहारके लिए बम्बई और अहमदाबाद के कपड़े भी विशुद्ध स्वदेशी नहीं हैं। हमें अपनी जरूरतकी सभी चीजें स्वयं अपनी ही बस्तियोंमें तैयार करनी चाहिए। पहले हम ऐसा ही करते थे और बेबस नहीं थे। इंग्लैंड और जापान आदि विदेशोंसे आनेवाला कपड़ा पहनना पाप है। अपनी आवश्यकताका कपड़ा स्वयं बना लेना बहुत ही लाभप्रद होगा। आज लाखों लोग भूखों मर रहे हैं; उन्हें भूखसे छुटकारा मिलेगा। रुई बहुत सस्ती है। हम कम दामोंसे कपड़ा तैयार कर सकेंगे। खुरदरा कपड़ा शुद्ध और पवित्र है।

मैंने एक सालमें स्वराज्य लेनेकी बात कही है। वह तभी सम्भव है जब हिन्दू और मुसलमानोंमें परस्पर तनिक भी सन्देह न रहे। सन्देहके कांटेको मनमें जगह दिये रहना एक ऐसी बुराई है, गुलाम जिसके शिकार हो जाते हैं। अच्छाईसे बुराई कभी पैदा नहीं हो सकती। ईश्वरका निर्देश है कि सत्यके अनुसार चलना स्वर्गके मार्गपर चलना है। मुसलमानोंको अपने भाइयोंपर सन्देह क्यों करना चाहिए और एसी सरकारसे जो मेसोपोटामियाके संकटका कारण है, और जिसने कुस्तुन्तुनियामें खलीफा [१]- को कैद तक कर लिया, सहयोग क्यों करना चाहिए। एक हो जाओ और भाई बन जाओ; फिर धरतीपर कोई भी ताकत ऐसी नहीं है जो तीस करोड़ लोगोंको गुलाम बनाये रख सके। क्या एक लाख अंग्रेज हमें डरा सकते हैं? वे तो हमारे ही समुदायों और विभिन्न दर्जेके लोगोंको, जैसे जमींदार और रैयतको, आपसमें लड़ाकर हमपर शासन करते हैं। किसानोंका जमींदारोंसे लड़ना उचित नहीं है। यह बड़ी भारी भूल है; इस तरह स्वराज्य हासिल नहीं हो सकता। मैं रामराज्य चाहता हूँ। अतः में यह भी नहीं चाहता कि जमींदार किसानोंपर अत्याचार करें। यदि जमींदार उनपर अत्याचार करें तो किसानोंका उनसे असहयोग करना उचित होगा। किन्तु अभी तो हमें सरकारसे असहयोग करना है, और इसलिए परस्पर असहयोगकी बात हमें नहीं सोचनी चाहिए।

पैसा इकट्ठा करना बहुत ही जरूरी है। इस प्रान्तमें एक स्वराज्य सभा स्थापित की गई है जिसके अध्यक्ष श्री हक[२] हैं और बाबू राजेन्द्रप्रसाद मन्त्री तथा कोषाध्यक्ष हैं। वे हर तीसरे महीने आय-व्ययका व्यौरा देंगे। हमें राष्ट्रीय स्कूल खोलने हैं। स्वयंसेवक चन्देके लिए आपके पास आयेंगे। आपको स्वराज्य-सभाकी मदद करनी

  1. टर्कीका सुलतान जो इस्लामका भी धार्मिक मुखिया था।
  2. मजहरूल हक।

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