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को भी असम्भव बना देता है। मैं ईश्वर और शैतान दोनोंके प्रति एक साथ वफादारी नहीं रख सकता।

वर्तमान प्रणालीके आसुरी स्वरूपका सबसे निश्चित प्रमाण यह है कि लॉर्ड रोनाल्डशे-जैसा एक सज्जन व्यक्ति भी हमें गलत रास्तेपर चलानेको बाध्य हो जाता है। जिस चीजपर फैसला देना जरूरी है उसपर वे फैसला नहीं देंगे। लॉर्ड महोदय पंजाबके विषयमें क्यों मौन हैं? वे खिलाफतकी बातको क्यों टाल जाते हैं? जिस मरीजको क्षय तिलतिल करके चाटे जा रहा हो, क्या मरहम चुपड़कर उसे कोई राहत पहुँचाई जा सकती है? क्या लॉर्ड महोदय यह नहीं देख पाते कि भारत सुधारोंकी अपूर्णतासे नहीं बल्कि (पंजाब और खिलाफतसे सम्बन्धित) दो अन्यायोंके किये जाने और फिर हम उन्हें भूल जायें, इसके क्रूर प्रयत्नोंसे विक्षुब्ध हुआ है। क्या वे यह नहीं समझ पाते कि सुलहसे पहले पूर्ण हृदय-परिवर्तनकी जरूरत है।

परन्तु आजकल असहयोगके सिर घृणाकी भाव थोप देना एक रिवाज ही बन गया है। मुझे यह देखकर खेद होता है कि कर्नल वेजवुड[१] भी इस जालमें फँस गये हैं। मैं निर्भीकतापूर्वक कहता हूँ कि घृणा समाप्त करनेका एकमात्र उपाय उसे अनुशासित स्वरूप में बाहर आने देना है। जबतक भारतकी भावनाओंके प्रति जानबूझकर विद्वेष और अवज्ञाको प्रोत्साहित किया जाता है तबतक घृणाको नेस्तनाबूद करना किसीके वशकी बात नहीं है; यह असम्भव काम में भी नहीं कर सकता। एक ओर भारतसे घृणा न करनेको कहना और साथ ही उसकी अत्यन्त पवित्र भावनाओंको नफरतकी ठोकर लगाना, उसका परिहास करता है। भारत अपनेको दुर्बल और विवश महसूस करता है और इसीलिए जो क्रूर शासक उसकी अवज्ञा करता है, उसे पेटके बल रेंगाता है, मासूम औरतोंकी लज्जाका अपहरण करता है, और उसके मासूम बच्चोंसे दिनमें चार बार अपने झंडेको सलाम करवाकर अपनी शक्तिको मान्यता देनेपर मजबूर करता है, उसके प्रति उसकी यह विवशता घृणाका रूप लेकर ही सामने आती है। असहयोगका सिद्धान्त लोगोंको स्वावलम्बी और समर्थ बनाने के लिए प्रयत्नशील है।

सशक्त और आत्मनिर्भर होनेपर भारत बॉसवर्थ स्मिथ और फ़ेंक जॉन्सन जैसे लोगोंसे घृणा करना बन्द कर देगा; क्योंकि तब उसके पास उन्हें दण्ड देनेकी ताकत होगी; और इसीलिए वह उनपर दया करके उन्हें क्षमा भी कर सकेगा।[२] यदि मुसलमान सशक्त होते तो वे अंग्रेजोंसे नफरत न करते बल्कि उनके मुकाबिलेके लिए खड़े होकर इस्लामकी सर्वाधिक मूल्यवान यातियोंके लिए उनसे लड़ते। मैं जानता हूँ कि अलीभाई जो केवल इस्लामकी प्रतिष्ठा और सम्मानके लिए जी रहे हैं और जो इसके लिए अपने प्राणोंकी आहुति देनेको सदा तत्पर हैं, उन्हीं अंग्रेजोंसे, जिनसे वे घृणा

  1. एक अंग्रेज मजदूर नेता और संसद सदस्य जो दिसम्बर १९२० में भारत आये और नागपुरके कांग्रेस अधिवेशनमें शरीक हुए।
  2. पंजाबमें अप्रैल-मई, १९१९ में मार्शल लॉ के दौरान गुजराँवालाके अतिरिक्त डिप्टी-कमिश्नर वॉसवर्थ स्मिथ तथा लाहौर क्षेत्रके कमांडर कर्नल जॉन्सनने जनतापर नृशंस अत्याचार किये थे। देखिए खण्ड १७, पृ४ २२३-२८२।