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सामाजिक बहिष्कार

परोक्ष अथवा अपरोक्ष हिंसा द्वारा अन्य लोगोंको अपनी बात माननेपर विवश करनेका कार्यक्रम नहीं। हमें बड़े धीरजके साथ अपने विरोधियोंके हृदय परिवर्तनकी चेष्टा करनी चाहिए। यदि हम गुलामीमें से प्रजातन्त्रकी भावना पैदा करना चाहते हैं तो हमें अपने विरोधियोंके प्रति बिलकुल ही सही और अच्छा व्यवहार करना होगा। ऐसा न हो कि हम सरकारकी गुलामीके स्थानपर असहयोगवादियोंकी गुलामी करने लगें। हम अपने लिए जिस स्वतन्त्रताका दावा करते हैं और जिसके लिए संघर्ष कर रहे हैं, वह हमें अपने विरोधियोंको अवश्य देनी चाहिए। यदि जनतासे सच्चा सहयोग मिले तो सरकारका बड़े से बड़ा सहयोगी भी घटनाओंके प्रतिकूल प्रवाहके आगे झुक जायेगा।

परन्तु असहयोगका पूरा-पूरा असर तो तभी होगा जब हम अहिंसात्मक बहिष्कार भी करें। हम जिस बातको असत्य समझें उससे कतई समझौता न करें, चाहे वह बात किसी गोरेमें हो या कालेमें। ऐसा बहिष्कार राजनैतिक बहिष्कार है। हम नये संसद सदस्योंसे[१] कोई अनुग्रह न लें। मतदाता यदि अपनी शपथके सच्चे हैं, तो वे उन लोगोंकी मदद न लेना अपना कर्त्तव्य समझेंगे जिन्हें अपना प्रतिनिधि माननेसे उन्होंने इनकार किया है। तथाकथित प्रतिनिधियोंको किसी हालतमें कोई भी प्रोत्साहन न देकर उन्हें अपनी शपथ निभानी चाहिए।

जनता यदि असहयोगके कार्यक्रमसे सहमत है तो उसे इन प्रतिनिधियोंके राजनैतिक कार्यक्रमों अथवा प्रीतिभोजों आदिमें शामिल होकर उनकी प्रतिष्ठामें थोड़ी-सी भी वृद्धि करनेसे बचना चाहिए।

किसी विषम परिस्थिति में अहिंसात्मक सामाजिक बहिष्कारकी सम्भावनाकी कल्पना की जा सकती है, जबकि प्रतिवादी अल्पसंख्यक किसी सिद्धान्तको माननेके कारण नहीं अपितु केवल प्रतिवाद करनेके लिए या इससे भी हीन कारणसे बहुसंख्यकोंके सामने झुकने से इनकार करते हों; परन्तु ऐसी परिस्थिति अभी तो नहीं है। किसी उग्र प्रकारका सामाजिक बहिष्कार, जैसे कि सार्वजनिक कुओंको इस्तेमाल करनेकी मनाही, नृशंसताका नमूना है। मैं सोचता हूँ कि ऐसा कोई भी समुदाय जो राष्ट्रीय आत्मसम्मान और राष्ट्रीय उन्नतिकी इच्छा रखता है, कभी ऐसा नहीं करेगा। अपने बीच या अंग्रेजोंके प्रति दबावकी प्रक्रियाओंसे हम इस्लाम अथवा भारत किसीको भी स्वतन्त्र नहीं कर सकेंगे।

[अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-१२-१९२०
 
  1. नई विधान परिषदोंके सदस्य।