पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उद्धृत किया जाता है वे क्षेपक हैं अथवा उनके अर्थके विषयमें मतभेद है। वैष्णवोंने अस्पृश्यताका धर्मके रूपमें वर्णन नहीं किया। अस्पृश्यताका दिन-ब-दिन लोप होता जा रहा है। रेलमें, सरकारी स्कूलोंमें, तीर्थक्षेत्रों में और अदालतोंमें उसका कोई स्थान नहीं बचा। मिलों और अन्य बड़े-बड़े कारखानोंमें अन्त्यजोंसे स्पर्शास्पर्शपर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इस तरह जिन वैष्णवोंको अन्त्यजोंका स्पर्श पाप समझकर करना पड़ता है उनसे मेरी प्रार्थना है कि वे ऐसा विचारपूर्वक पुण्य समझकर करें। ‘गीता’ में भी यह कहा गया है: समदर्शीके लिए ब्राह्मण, श्वान, अन्त्यज सब एक जैसे हैं।[१] ‘नरसैयों’[२] भी कहता है कि वैष्णवमें समदृष्टि होनी चाहिए। वैष्णव-जन अन्त्यजको सर्वथा अस्पृश्य मानते हुए उसके प्रति समदर्शी होनेका दावा नहीं कर सकते।

[गुजराती से]
नवजीवन, १२-१२-१९२०

६७. भाषण: भागलपुरमें

१२ दिसम्बर, १९२०

महात्मा गांधीने श्रोताओंके समक्ष भाषण देते हुए कहा कि शैतानको शैतान- जैसे गुणोंसे नहीं हराया जा सकता। केवल ईश्वर ही शैतानको जीत सकता है, इसलिए शैतान-जैसी इस सरकारको सत्य और न्यायसे हराना चाहिए। इसके बाद उन्होंने कहा कि लोग अंग्रेजोंकी जीवनपद्धति अपनाकर प्रगति नहीं कर सकते। हिन्दू ऋषियोंके पास कुर्सियाँ नहीं थीं; वे पेड़ोंके नीचे पढ़ाते थे। मुसलमान फकीर भी, जो मुसलमानोंकी प्रगतिके सच्चे कारण थे, कुसियोंपर नहीं बैठते थे; जंगलोंमें रहते थे।

इसके बाद महात्माजीने कहा कि मैं भारतीय जागृतिका कारण नहीं; वरन्लो गोंकी यह प्रतीति कि वे दासतामें पड़े हैं, जागृतिका कारण है। सरकार लोगोंको लड़ाकू हवाई जहाजों द्वारा नहीं, खिताबों, कौंसिलों, अदालतों और स्कूलों द्वारा दबाए हुए है। यदि आप आजाद होना चाहते हैं तो आपको बोअरों द्वारा अपनाये गये तरीके काममें लेने चाहिए। जिनका मुझे निजी अनुभव है।[३] बोअर औरतोंने अपने बच्चोंको अंग्रेजी स्कूलोंमें नहीं पढ़ने दिया। उन्होंने जो साहस दिखाया उसका भारतीय जनतामें अभाव है। इसलिए लोगोंको सरकारसे असहयोग करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतमें औरतें सूत कातती थीं और उससे कपड़ा बुना जाता था। लोगोंको पुराना तरीका फिरसे रूढ़ करना चाहिए।

  1. अध्याय ५, श्लोक १८।
  2. नरसिंह मेहता।
  3. दक्षिण आफ्रिकामें।