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६९. भाषण: कलकत्तामें असहयोगपर[१]

१३ दिसम्बर, १९२०

यह निश्चित है कि सारे देशमें जहाँ कहीं देशके विभिन्न हिस्सोंके लोगोंकी मिली-जुली सभाएँ और बैठकें होंगी उनमें अभिव्यक्तिका राष्ट्रीय माध्यम हिन्दी ही होगी। फिर भी आपमें से बहुत सारे लोग हिन्दी नहीं समझते। इसीसे स्पष्ट हो जाता है कि आज हम कितनी गिरी हुई अवस्था में हैं, और यह एक ही तथ्य यह सिद्ध कर देनेके लिए काफी है कि आज जिस चीजकी सबसे अधिक जरूरत है, वह है असहयोग आन्दोलन। इसका उद्देश्य हमें इस अधोगतिसे उबारना है। सरकारने इस महान राष्ट्रको तरह-तरहसे नीचे गिराया है। जबतक हममें परस्पर सहयोग नहीं होगा तबतक हम इस सरकारके पंजेसे छूट नहीं सकते। अभिव्यक्तिके एक राष्ट्रीय माध्यमके बिना ऐसा सहयोग भी सम्भव नहीं है।

लेकिन आज मैं यहाँ अभिव्यक्तिके उस माध्यमकी हिमायत करने नहीं आया हूँ। आज मैं यहाँ देशसे यह अनुरोध करने के उद्देश्यसे आया हूँ कि वह अहिंसात्मक और क्रमिक असहयोगका कार्यक्रम स्वीकार कर ले। अपने कार्यक्रमके वर्णनमें मैंने जितने शब्दोंका प्रयोग किया है, सभी अत्यन्त आवश्यक हैं और “क्रमिक ”तथा “अहिंसात्मक” दोनों विशेषण समस्त पदके अभिन्न अंग हैं। मेरे लिए तो अहिंसा धर्मका अंग है, एक सिद्धान्तकी बात है। लेकिन बहुतसे मुसलमान इसे एक नीति मानते हैं; और अगर लाखों नहीं तो हजारों हिन्दू भी इसे नीति ही मानते हैं। चाहे यह एक सिद्धान्तकी बात हो या नीतिकी, आप अहिंसाकी आवश्यकता और उसके मूल्य स्वीकार किये बिना भारतके करोड़ों लोगोंको उनके राजनीतिक अधिकार दिलानेका कार्यक्रम पूरा नहीं कर सकते। हो सकता है, कुछ देरके लिए हिंसाके बलपर थोड़ी बहुत सफलता मिल जाये, लेकिन अन्ततः उससे कोई खास सफलता नहीं मिल सकती। दूसरी ओर, हिंसात्मक कार्रवाई राष्ट्रकी प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मानके लिए घातक होगी। भारत सरकारने जो नीली पुस्तिकाएँ जारी की हैं, उनसे प्रकट होता है कि हमारे द्वारा हिंसाका सहारा लेने से सरकारको सैनिक व्यय बढ़ाते जाना पड़ा है; और यह हमारी हिंसाके अनुपातमें नहीं, कई गुना बढ़ाया गया है। हमने हिंसासे काम लिया, इसलिए हमपर गुलामीका शिकंजा और भी सख्त कस दिया गया है। भारतमें ब्रिटिश शासनका पूरा इतिहास इस बातकी साक्षी देता है कि हिंसाका प्रयोग करके हम कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाये। इसलिए मैं यह तो कहता हूँ कि जिस सरकारने इस तरह हमारे पौरुषका हरण किया है, उस सरकारकी गुलामी सहनेके बजाय मैं हिंसाको ही अधिक पसन्द करूँगा, लेकिन साथ ही में पूरा जोर

  1. यह भाषण कुमार टोली पार्क, कलकत्तामें ‘सबैट’ के सम्पादक श्री श्यामसुन्दर चक्रवर्तीको अध्यक्षता में आयोजित सभामें दिया गया था।