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प्रत्युत्तर


परन्तु सर्वश्री पोपले और फिलिप्सने इस बातपर एतराज किया है कि मैं आज उन लोगोंके साथ हूँ जो शक्ति होनेपर तलवार भी उठा सकते हैं। मैं इसमें कोई बुराई नहीं देखता। उनका उद्देश्य भी उतना ही ठीक है जितना मेरा। और फिर रक्तहीन संघर्षको विजयी बनने में सहायता देकर तलवार उठानेकी नौबत ही न आने देना अधिक युक्ति-संगत नहीं है? जो लोग मानते हैं कि भारतीय सचाईपर हैं वे इस अहिंसात्मक आन्दोलनको सहायता देकर ईश्वरका कार्य ही करेंगे।

इन अंग्रेज मित्रोंका एक दूसरा एतराज भी है, और वह अधिक संगत है। यदि मुसलमानोंकी माँगें न्यायपूर्ण न होतीं तो उनका साथ देकर में स्वयं अनुचित कार्य करता। असलमें मुसलमानोंकी माँग यह नहीं है कि गैर-मुसलमानों या गैर-तुर्कियोंपर विदेशी शासन बना रहे; भारतीय मुसलमान आत्म-निर्णयके विरोधी नहीं हैं। परन्तु वे आत्म-निर्णय के नामपर मेसोपोटामियाके शोषणकी अन्यायपूर्ण योजनाका अन्ततक विरोध करेंगे। आर्मीनियाको स्वतन्त्रता देनेके झूठे बहानेकी ओटमें टर्कीको और उसके द्वारा मुसलमानोंको नीचा दिखानेका जो जानबूझकर प्रयत्न किया जा रहा है, उसका विरोध वे अवश्य करेंगे।

उनका तीसरा एतराज विद्यालयोंके सम्बन्धमें है। मैं मिशनके या अन्य विद्यालयोंको सरकारी रुपयेसे चलानेका विरोधी हूँ। यह सच है कि किसी समय यह रुपया हमी लोगोंका था। जिस डाकूने मेरा धन, धर्म और सम्मान लूटा है, वही डाकू यदि इन भले पादरियोंको रुपया देता है, तो क्या इस रुपयेसे मेरी शिक्षाका प्रबन्ध करना उनके लिए उचित होगा, क्योंकि यह रुपया तो पहले ही मेरा था?

मैंने स्वयं भारतकी आर्थिक लूट सहन कर ली थी। परन्तु जब पंजाबमें किये गये अत्याचारोंसे हमारी इज्जत लुटी और टर्कीके साथ किये गये अन्यायसे हमारा धर्म लुटा, तब मेरा उनको सहन करना पाप होता। मेरे उपर्युक्त शब्द कड़े हैं। परन्तु इनसे नरम शब्द मेरे गहरे विश्वासको व्यक्त करने में समर्थ नहीं हो सकते। यह कहनेकी जरूरत नहीं कि सरकारी सहायता प्राप्त या सरकारसे सम्बद्ध विद्यालयोंके बहिष्कारका अर्थ नवयुवकोंको शिक्षासे बिलकुल वंचित कर देना नहीं है; जितनी तेजीसे ये विद्यालय खाली हो रहे हैं उतनी ही तेजीसे राष्ट्रीय विद्यालयोंकी स्थापना की जा रही है।

सर्वश्री पोपले और फिलिप्सका खयाल है कि पंजाब तथा खिलाफतके मामले में जो अन्याय किये गये हैं उनसे मेरी न्याय-भावना मलिन हो गई है। मैं समझता हूँ, ऐसा नहीं हुआ है। मैंने तो मित्रोंसे कहा है कि यदि भारतपर ब्रिटिश सत्ता कायम होनेका (जाना-बूझा, सोचा-विचारा) कोई अच्छा परिणाम निकला हो, तो वे मुझे बतायें। में पुनः इसी अनुरोधको दुहराता हूँ और उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि यदि मुझे यह मालूम हो जाये कि खिलाफत तथा पंजाबके विषयमें अपनी उत्कट भावनाके वशीभूत होकर मैंने कोई भूल कर दी है तो मैं उसको सुधारनेका पूरा प्रयत्न करूँगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-१२-१९२०