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७४.प्रत्युत्तर

सर्वश्री पोपले और श्री फिलिप्सने “भारतके अंग्रेजोंके नाम”[१]शीर्षक मेरे पत्रका उत्तर देनेकी कृपा की है। उन्होंने जिस मैत्री-भावसे अपना पत्र[२] लिखा है, मैं उसकीहृदयसे प्रशंसा करता हूँ। परन्तु मेरे और उनके मतोंमें बुनियादी अन्तर है और उसके कारण फिलहाल तो हममें मतैक्य नहीं हो सकता। जबतक मुझे इस बातका विश्वास था कि अपनी गम्भीर भूलोंके बावजूद, ब्रिटिश साम्राज्य संसार और भारतके कल्याणके लिए कार्य कर रहा है, तबतक में उससे उसी तरह चिपटा रहा जैसे बच्चा अपनी माँ की छातीसे चिपटा रहता है। परन्तु अब मेरा वह विश्वास जाता रहा है। अंग्रेज जातिने पंजाब और खिलाफतके विरुद्ध अपराधोंका समर्थन किया है। में यह मानता हूँ कि कुछ अल्पसंख्यक अंग्रेज ऐसे हैं जो उनसे असहमत हैं। परन्तु जो अल्पसंख्यक केवल अपनी राय प्रकट करके सन्तोष कर लेते हैं वे अन्यायीको सहायता ही पहुँचाते हैं और अन्यायमें भागीदार बनते हैं।

जब किसी व्यक्तिमें बुराइयाँ अधिक होती हैं और अच्छाइयाँ कम, तो कोई भी उसकी अच्छाइयोंको चुन-चुनकर उनकी प्रशंसा नहीं करता और जनतासे उनको प्रशंसनीय माननेके लिए नहीं कहता। अच्छाईका दिखावा करके बुराइयोंको हलका करना और असावधान लोगोंको जालमें फँसाना, यह चाल शैतानको बहुत पसन्द है। संसारके पास शैतानको हरानेका एक ही मार्ग है; उससे घृणा करना। जो अंग्रेज अपने मान्य आदशपर अमल कर सकते हैं, उनको में आमंत्रित करता हूँ कि वे असहयोगमें भाग लें। जिस समय अंग्रेजोंके साथ बोअरोंका युद्ध हो रहा था, श्री डब्ल्यू० टी० स्टेड[३]अंग्रेज फौजोंकी पराजयकी प्रार्थना करते थे और कुमारी हॉबहाउस[४] बोअर लोगोंको युद्ध जारी रखने के लिए कहती थीं। बोअरोंके साथ जो अन्याय किया गया था, उसकी अपेक्षा भारतके साथ किया गया विश्वासघात कहीं अधिक बुरा है। बोअर लोगोंने अपने अधिकारोंके लिए युद्ध किया और रक्त बहाया था। इसलिए जब हम अपना रक्त बहानेके लिए तैयार हो जायेंगे तो हमारा अधिकार भी मूर्त हो जायेगा और तब वीर-पूजक यह संसार भी उसे समझने और उसका आदर करने लगेगा।

  1. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ ३९७-४००।
  2. १५ नवम्बरको बंगलौरसे लिखे गये इस पत्रमें सर्वश्री पोपले और फिलिप्सने अन्य बातोंके अलावा यह भी लिखा है कि वे भारतके शासक होनेकी अपेक्षा उसके सेवक होना अधिक पसन्द करेंगे।
  3. विलियम टॉमस स्टेड (१८४९-१९१२ ); अंग्रेज पत्रकार और सुधारक; जिनके उद्योग और मौलिक विचारोंका उस जमानेकी पत्रकारिता और राजनीतिपर गहरा असर पड़ा। इन्होंने बड़े उत्साह से इंग्लैंडमें शान्ति-आन्दोलनका समर्थन किया था।
  4. एमिली हॉबहाऊस, उदार विचारोंकी एक अंग्रेज महिला; गांधीजीने अपनी आत्मकथा में इनका उल्लेख किया है।