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‘गुरखा’ जहाजपर बातचीत

स्वाधीनता मिल गई। और आज आदर और प्रतिष्ठाकी जो झूठी कल्पना मनोमें घर किये बैठी है, केवल उसका नाश हो जाये तो इतना काफी है। आज जहाँ जाते हैं वहाँ क्या देखने को मिलता है? अंग्रेजोंसे भयभीत भारतीय; अपने विचारोंको दूसरोंसे छिपाते हुए भारतीय! इसकी अपेक्षा अधिक अवनतिजनक दृश्य और क्या हो सकता है?

अं: आप कहते हैं कि प्रत्येक अंग्रेज भारतीय मजदूरको भी अपना समकक्ष माने। क्या यह आवश्यकतासे अधिक अपेक्षा करना नहीं है? प्रत्येक भारतीय सज्जन क्या मजदूरको अपना समतुल्य मानता है? आप जो यह कहते हैं, कि प्रत्येक अंग्रेजको प्रत्येक भारतीयसे ठीक वैसा व्यवहार करना चाहिए जैसा वह किसी दूसरे अंग्रेजसे करता है, सो क्या यह उचित है? एक अंग्रेज ‘स्क्वायर’ जैसे अपने अंग्रेज मजदूरके साथ व्यवहार करता है अवश्य वैसा ही बर्ताव भारतीय मजदूरके साथ अंग्रेजोंको करना चाहिए।

गां०: बहुत ठीक। आपने मेरी बात और अधिक सुन्दर ढंगसे कही। मेरे कहनेका यही अभिप्राय है।

भा०: तो फिर आपके कथनानुसार अत्याचारी सरकारके साथ असहयोगका तात्कालिक उद्देश्य भी शुद्धीकरण ही है? इसके बाद शुद्धीकरणसे अन्य ऐहिक लाभ मिलें या न मिलें, इसकी कोई चिन्ता नहीं है?

गां०: हमारी शुद्ध तपस्थाके पूर्ण होनेपर ऐहिक लाभ उसमें से स्वयमेव फलीभूत होंगे। उदाहरणके लिए पंजाबके अत्याचारोंके सम्बन्धमें तब कुछ भी करनेको नहीं रह जायेगा। इसके बाद पंजाबके अत्याचारोंके एक भी अपराधीको हिन्दुस्तान में खड़े होनेकी जगह नहीं मिलेगी। इतना ही नहीं, हमारी तिजोरीसे ऐसे किसी भी गुनहगारको वेतन अथवा पेन्शन देना सम्भव न होगा।

अं०: तब क्या आपने सिर्फ अंग्रेजोंके लिए सजा निर्धारित की है? भारतीयों――सामान्य भारतीयोंने भी तो गुनाह किये हैं, उनका क्या होगा?

गां०: यह प्रश्न आश्चर्यजनक है। हमारे गुनाहोंकी अपेक्षा हमें हजार गुना अधिक सजा मिल चुकी है। मैं विश्वासके साथ कहता हूँ कि जिन्होंने गुनाह किये थे, उन्हें तो सजा मिली ही, सैकड़ों निर्दोष व्यक्ति भी मारे गये, अनेक निर्दोष व्यक्तियोंको जेल जाना पड़ा। बच्चोंतकको कष्ट सहन करना पड़ा है। निर्दोष स्त्रियोंका अपमान हुआ है। जलियाँवालामें जो कत्लेआम किया गया वह भी निर्दोष व्यक्तियोंका ही था। इससे अधिक भी कोई सजा हो सकती है क्या? लेकिन मैंने तो अंग्रेज अधिकारियोंको सजा देनेकी बात ही नहीं की है। मैंने तो सिर्फ इतना ही कहा है कि उन्हें अब हिन्दुस्तानका पैसा नहीं मिलते रहना चाहिए, और उनके पद और आधियाँ समाप्त कर दी जानी चाहिए। उन्हें सजा देनेकी बात कही जाये तो उनमें से कितने ही लोगोंकी सजा तो सिर्फ फाँसी ही हो सकती है। पर मेरे धर्म में इसका कोई स्थान नहीं है। हिन्दुस्तान क्या चाहता है, सो मैं नहीं जानता।