शिक्षा प्राप्त वर्गका दिमाग निस्तेज हो गया है। हमारी कल्पना शक्ति अथवा सर्जनाशक्ति ही नष्ट हो गई है। हमारा सारा समय विदेशी भाषाके उच्चारण और उसके रूढ़िगत प्रयोगोंको याद करने में व्यतीत हो जाता है। यह एक बेगारका काम है और इसका परिणाम यह हुआ कि हम यूरोपीय सुधारोंके ‘स्याही सोख’ बन गये हैं। उनका उत्तम अंश लेनेके बदले क्षुद्र अनुकरणकर्त्ता बन गये हैं। दूसरा नतीजा यह हुआ है कि हममें और सामान्य वर्गके बीच बड़ी भारी खाई पड़ गई है। हम, जिस भाषामें वे समझ सकें उस भाषामें राजनैतिक विषय तो क्या, सामान्य शारीरिक स्वास्थ्य और अन्य सार्वजनिक हित सम्बन्धी बातें भी उन्हें नहीं समझा पाते। इस युगमें हम प्राचीन ब्राह्मणों-जैसे हो गये हैं। बल्कि उनसे भी गये गुजरे हो गये हैं। उनके हृदय मलिन नहीं थे। वे राष्ट्रीय सभ्यताके ‘न्यासी’ की तरह थे। हम तो वैसे भी नहीं रह गये हैं। हम अपनी शिक्षाका अनुचित उपयोग कर रहे हैं। सामान्य वर्गके साथ हमारा व्यवहार ऐसा है मानो हम उनसे श्रेष्ठ हों। मेरी अभिलाषा है कि आप इस सम्बन्ध में मेरे साथ जिरह करें। लेकिन मैं इतना अवश्य कहूँगा कि मेरे ये विचार आजके नहीं हैं; अनेक वर्षोंके अनुभवके फलस्वरूप में इन विचारोंपर पहुँचा हूँ।
अं०: इस दिशामें हमने विचार ही नहीं किया। इसलिए हम सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि हम इसपर विचार करेंगे।
गां०: यह ठीक है। एक बात कहना भूल गया। शिक्षाकी इस पद्धतिसे हमारी आत्माका हनन हो गया है, यह तो मैंने कहा ही नहीं। आप लोग धर्म-निरपेक्ष शिक्षाकी ही अर्चना करते आये हैं, इसलिए हिन्दुओंको धार्मिक शिक्षा तो कुछ मिल ही नहीं पाई। इंग्लैंडमें इसका दुष्परिणाम बिलकुल ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वहाँ धर्मगुरु धार्मिक शिक्षा देनेका थोड़ा बहुत प्रबन्ध कर लेते हैं।
भा०: सच बात तो यह है कि लूटके धनसे आप अपने बालकोंको शिक्षा नहीं देना चाहते; ठीक है कि नहीं?
गां०: हाँ, इसके अलावा हमें शिक्षा लुटेरोंके झंडेके नीचे भी नहीं चाहिए। मेरा कहना है कि जिस सरकारके प्रति हमारे मनमें तनिक भी निष्ठा नहीं रही है, प्रेमभाव नहीं रहा है, उस सरकारके अधीन चलनेवाले स्कूलोंसे हमारा कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। मैं आपसे एक सीधी-सी बात कहता हूँ। एक समय ऐसा था जब मैं स्वयं ‘गॉड सेव द किंग’ (सम्राट् चिरजीवी हों) अतिशय उमंगसे गाता था; इतना ही नहीं, अपने अंग्रेजी न जाननेवाले लड़कोंको भी मैंने यह गीत कंठस्थ करवाया था। मैं आफ्रिकासे राजकोट आया था। मैंने ट्रेनिंग कालेजके विद्यार्थियोंको भी यह गीत सिखाया था। क्योंकि मैं समझता था कि सच्चे राजभक्त व्यक्तिको यह गीत आना चाहिए। लेकिन आज क्या स्थिति है? आज मैं इस गीतको अपने हृदयपर हाथ रखकर नहीं गा सकता और किसीको गानेके लिए भी नहीं कह सकता। एक व्यक्ति के रूप में सम्राट् जॉर्ज बहुत जियें, ऐसा मैं कहूँगा, लेकिन जिस साम्राज्यने मनुष्य और भगवान्के आगे अपनेको गिरा दिया है वह एक क्षणके लिए भी टिके, ऐसी कामता मैं नहीं कर सकता।