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सम्पूर्ण गांधी वामय

भा०: आप कह चुके कि शिक्षण पद्धति कैसी है, उससे आपको कोई सरोकार नहीं है।

गां०: हाँ, यह सच है।

भा०: हमारे विश्वविद्यालयोंका संचालन तो भारतीय करते हैं, उनसे सम्बन्धित नीति निर्धारित करनेवाले भी भारतीय होते हैं।

गां०: हाँ, यह बात सच है। विश्वविद्यालयवाले अगर मेरी बात मानें तो मैं उनसे कहूँगा कि आप अपने ‘चार्टर’ फाड़ डालें। ऐसा करनेके बाद विश्वविद्यालय हमारे ही हो जायेंगे। अगर इसके उत्तरमें वे यह कहें कि इससे सरकारकी ओरसे मिलने वाला अनुदान बन्द हो जायेगा तो मैं उन्हें यह गारंटी देने को तैयार हूँ कि पैसा मैं लाकर दूँगा। आपसे में सिर्फ इतना ही कहता हूँ कि आप अपने विश्वविद्यालयोंको राष्ट्रीय बनायें। पंडितजीसे[१]भी मैंने यही कहा कि वाइसरायके चार्टरको वापस कर दें और महाराजाओंको[२]भी, अगर वे चाहें तो, उनका पैसा वापस कर दें। पैसा कम पड़ेगा तो भिक्षा माँगेंगे। यदि आपमें महाराजाओंसे दान माँगनेकी असाधारण योग्यता है तो सामान्य वर्ग से भीख माँगनेकी थोड़ी बहुत शक्ति मुझमें भी है।

भा०: लेकिन ‘चार्टर’ ने क्या बिगाड़ा है?

गां०: अरे ‘चार्टर’ के आनेसे वह सब-कुछ आ गया जो सरकार लाना चाहती है। ‘चार्टर’ है सिर्फ इसलिए हिन्दू विश्वविद्यालय ड्यूक ऑफ कनॉटको[३] सम्मानित करेगा। यह मैं कैसे सहन कर सकता हूँ? नहीं, मैं तो ठीक ही कहता हूँ कि श्रीमती बेसेंटने एक बार कहा था कि “तुम तो राज्यविप्लव――बलवा करवाना चाहते हो।” यह बात सच है। मेरा कहना सिर्फ इतना ही है कि यह विप्लव केवल ‘क्रान्तिमूलक’ नहीं होना चाहिए बल्कि विकासमूलक होना चाहिए। विप्लव तो होना ही चाहिए, ऐसा मुझे लगता है। उसके बिना मुक्ति नहीं है। देखो न, सरकारको तो उचित-अनुचितका विचार ही नहीं रह गया है। उसने अभी हाल ही में जो निर्लज्ज सार्वजनिक घोषणा की है, उसे देखो। उसमें बहुत आडम्बरपूर्ण वाक्यजालकी रचना करके कहा है कि फिलहाल तो हमने समाचारपत्रोंको छूट दे दी है। हम किसीकी जुबानपर ताला लगानेवाले नहीं हैं। तथापि वह क्या कर रही है? उसने पंजाबके शान्त कार्यकर्ता आगा सफदरके मुँह में किस कारण ताला लगाया है? उनमें धर्मान्धता नामकी चीज नहीं; उनके जैसा शान्त कार्यकर्ता मैंने पंजाबमें नहीं देखा। इसके अलावा अभी उस दिन ‘सर्वेन्ट’ पत्रके बाबू श्यामसुन्दर चक्रवर्तीने मुझसे कहा कि उन्हें सरकारकी ओरसे एक ‘चेतावनी’ मिली है। सो किसलिए? ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित श्री राजगोपालाचारीके[४] “मतदाताओंको सूचना” नामक लेखको अपने पत्र में प्रकाशित करनेकी वजहसे। यह स्थिति असह्य है।

  1. पं० मदनमोहन मालवीय।
  2. भारतीय राजा जिन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयके लिए उदारतासे धन दिया था।
  3. जो कि बहुत जल्द भारत आनेवाले थे।
  4. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, (जन्म १८७९- ); वकील, पत्रकार, लेखक और राजनीतिज्ञ; भारतके गवर्नर जनरल (१९४८-५०)।