पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१७

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नौ

कर्त्तव्य है जिससे कि १३ तारीखको जो अत्याचार हुए थे वे फिर न होने पायें।... यह सप्ताह शुद्ध तपश्चर्या, भक्ति और फकीरीका होना चाहिए। इस सप्ताहमें हमें अपनी सब भूलोंके लिए ईश्वरसे और जिनके प्रति हमने वे भूलें की हैं उनसे माफी मांगनी चाहिए। हमारा बल हमारी नम्रतामें है। हम अंग्रेजोंका अथवा अपने विरोधियोंका बुरा न चाहें, उन्हें बुरा न कहें ।“ (पृष्ठ ४५७-५८)

इस खण्डमें सी० एफ० एन्ड्रयूज और सरलादेवी चौधरानी के नाम लिखे गये गांधीजी के पत्र, व्यक्तिगत सम्बन्धोंसे जो समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, उन्हें देखने-समझनेके ध्यानसे बहुत दिलचस्प हैं। एन्ड्रयूज असहयोग आन्दोलनकी सारीकी-सारी तफसीलसे सहमत नहीं थे और प्रायः उस सम्बन्धमें अपनी आशंका व्यक्त किया करते थे। गांधीजी उन्हें सदा ही स्नेह और सौम्यता के साथ उत्तर देते थे और फिर भी उन दोनोंके बीच जो मतभेद था, उसे न तो कभी कम तौलते थे और न उसे कम करके ही दिखाते थे। सरलादेवीके प्रति वे बड़ी स्पष्टवादिता से काम लेते थे और उनकी छोटी-छोटी कमजोरियोंकी आलोचना करते थे। किन्तु ऐसा जान पड़ता है कि उनके विचारोंसे परिपूर्ण सहमति उन्हें प्राप्त नहीं हुई। इन पत्रोंसे व्यक्त होनेवाली एक बात और भी है, उनकी अगाध विनप्रता, जिसके सहारे वे कठिनसे-कठिन परिस्थितियों में से शान्तभावेन उत्तीर्ण हो जाते थे।