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भाषण: नागपुरके अन्त्यज सम्मेलन में

माँने मुझे सिखाया है कि यह काम पवित्र है। यह काम मैलेसे सम्बन्धित होनेकेबावजूद है तो पवित्र ही। इस कामको जो पवित्र समझकर करता है वह स्वर्ग जाता है। इस कामको न छोड़ते हुए भी आप हिन्दू धर्ममें रह सकते हैं। आपको अगर कोई जूठा अथवा रँधा हुआ खाना भी दे तो आप उसे अस्वीकार करें और कच्चे अन्नकी माँग करें। आप सफाईसे रहें। पाखाना साफ करने के बाद आप अपने वस्त्र बदल डालें। मैला साफ करने के बावजूद, जैसे मेरी माँ साफ रहती थीं, वैसे ही आप साफ रहें। बदलनेके लिए वस्त्र हमें कहाँसे मिलेंगे, ऐसा आप पूछेंगे; आप हिन्दू-समाजसे यह कह सकते हैं कि हमें पन्द्रह, बीस, तीस अथवा जितने रुपयोंके हम योग्य हैं उतने न मिलें तो हम काम नहीं करेंगे। आप उससे यह कह सकते हैं कि जैसे बढ़ई, लुहार तुम्हारा काम करते हैं वैसे हम भी समाजका आवश्यक काम करते हैं। आप निडर बनें। मैं गुजरातके अन्त्यजोंको पहचानता हूँ, उनके स्वभावसे वाकिफ हूँ। उन्हें मैं यही सिखा रहा हूँ कि आप अस्पृश्यताके दोषको अपने बलसे दूर करें, आप कट्टर हिन्दू बनें जिससे हिन्दू-समाज घृणा न करके आपकी पूजा करे।

मैं यह कार्य आपकी मार्फत अथवा हिन्दू-समाजकी मार्फत ही करवाना चाहता हूँ। मैं आपसे कहता हूँ कि आप जो हक माँग रहे हैं उसके योग्य बनें। मेरा आशय यह नहीं है कि आप योग्य नहीं हैं। मैं जब हिन्दुस्तानसे स्वराज्यके योग्य बननेकी बात कहता हूँ तब मैं हिन्दुस्तानको अयोग्य नहीं मानता; मैं उसे और भी अधिक योग्य बननेके लिए कहता हूँ। उसी तरह अन्त्यजोंसे कहता हूँ कि आपका अधिकार स्वतन्त्र होनेका है, प्रत्येक हिन्दूके साथ समानाधिकार प्राप्त करनेका है, लेकिन मैं तो आपसे तपश्चर्या करके और भी अधिक योग्य होनेको कहता हूँ।

तपश्चर्याक बारेमें मैं अपने जीवनके दो अनुभव आपसे कह देना चाहता हूँ। अहमदाबाद में सत्याग्रहाश्रम खोलनेके बाद मैंने दूधाभाई नामक एक अन्त्यज और उनकी पत्नीको आश्रममें रखा और जब मैंने उन्हें रखा तब हिन्दू समाजने क्या किया? हम जिस कुऐँसे पानी भरते थे उस कुएँसे दूधाभाईकी पत्नीको पानी नहीं लेने दिया। मैंने कहा कि दूधाभाईको पानी नहीं भरने दोगे तो मैं भी इस कुएँसे पानी नहीं लूँगा। उस कुएँसे पानी भरनेका मुझे अधिकार था लेकिन मैंने उसे छोड़ दिया। दूधाभाईने क्या किया? दूधाभाई तो स्वच्छ थे। वे तो उन्हें जितनी गालियाँ सुननेको मिलती थीं, सुन लेते थे। इस तपश्चर्यासे तीन दिनोंके भीतर कष्ट दूर हो गया और लोग समझ गये कि उस कुएँसे दूवाभाई भी पानी भर सकते हैं। इन्हीं दूधाभाईकी लड़की लक्ष्मी आज मेरे घर में लक्ष्मीके समान घूमती फिरती है। आप सब अगर दूधाभाई-सी तपश्चर्या सीख लें तो आपके दुःख आज ही मिट जायें।

अब अन्त्यजेतर हिन्दुओंसे कहता हूँ कि आप भी बहादुर बनें और अपने पापको दूर करें। मैं अपनेको धार्मिक मानता हूँ। आप कह सकते हैं कि यह मेरा भ्रम है। किन्तु मेरी मान्यता है कि जबतक आप इस पापसे मुक्त नहीं हो जाते, अन्त्यजोंसे क्षमा नहीं माँगते तबतक दूसरे अनेक कष्ट आपके माथेपर मँडराते रहेंगे। अस्पृश्यता पाप है ऐसा समझना चाहिए। आप सोच-समझकर अपना यह पाप धो डालें तो आप आज ही स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकते हैं।