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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अब दूसरा दृष्टान्त पेश करके मैं आपको हिन्दू-धर्मकी सरलताकी झाँकी दिखाना चाहता हूँ। मैं जब दक्षिण आफ्रिकासे भारत आया उस समय नायडू नामका एक पंचम (अन्त्यज) लड़का मेरे साथ था। भाई नटेसन [१]अन्त्यजोंका महान काम करनेवाले एक सज्जन हैं। अहमदाबाद जाते हुए मद्रासमें मैं उनके घर ठहरा था। मेरे अनेक मित्रोंने मुझसे कहा था कि तुम यह क्या कर रहे हो? नटेसनकी माता इतने पुराने विचारोंकी है कि अगर उन्हें पता चल गया कि तुम उनके घर एक अन्त्यज को ले आये हो तो वे प्राण ही त्याग देंगी। मैंने कहा कि लड़केका त्याग करने से बेहतर यही होगा कि मैं नटेसनके घर न जाऊँ। लेकिन नटेसन तो सरल चित्तके व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी माताके पास जाकर सारी हकीकत कह दी। माताजीने कहा कोई हर्ज नहीं है; उन्हें आने दो। वे समझ गई कि मेरे साथ आनेवाला अन्त्यज मलिन हो ही नहीं सकता। और मैंने भी इस लड़केकी सारी मलिनता धो डाली थी। हम उनके घर में ठहरे और जिस कुऐँसे नटेसनकी माता पानी लेती थीं उसी कुऐँसे हमने भी पानी लिया। इस किस्सेसे इतना समझमें आ सकता है कि सभी अन्त्यजेतर नटेसनकी-सी पवित्रता और सरलतासे अपनी माताओं और बहनोंको समझा सकते हैं। तात्पर्य यह है कि इस प्रश्नका समाधान अन्त्यजेतरोंकी सरलता और अन्त्यजोंकी तपश्चर्यासे ही होगा।

परमेश्वरसे मेरी प्रार्थना है कि वह अन्त्यज भाइयोंको धैर्य और सन्मति दे जिससे कि वे अपने धर्मका त्याग न करें। हिन्दुओंके लिए मेरी प्रार्थना है कि हे ईश्वर, तू हिन्दू-समाजको इस पापसे, इस दुष्टतासे, मुक्त कर !

[गुजराती से]
नवजीवन, २-१-१९२१
 

८६. टिप्पणियाँ

‘नवजीवन’ की भाषा

मैं अपनी इस व्यस्त यात्राके अपने समस्त अनुभवों और विचारोंको जितने विस्तारसे लिखना चाहता हूँ उतने विस्तारसे नहीं लिख पाऊँगा; फलतः फिलहाल संक्षिप्त टिप्पणियोंसे ही सन्तोष मानकर कुछ जरूरी विचारों और अनुभवोंको पाठकोंके सामने प्रस्तुत करने की अनुमति चाहता हूँ। ‘नवजीवन’ गाड़ीवान और मजदूर पढ़ते हैं, यह बात मुझे अच्छी लगती है। उनमें से दो पाठकोंने मुझे लिखा है कि मुझे ‘नवजीवन’ में ‘अस्पृश्यता’, ‘महाराष्ट्र-यात्रा’ आदि कठिन शब्दोंका प्रयोग नहीं करने देना चाहिए। ऐसे पाठकोंको मैं सन्तुष्ट करना चाहता हूँ; लेकिन मैं साथ ही भाषाको बिगाड़ना भी उचित नहीं समझता

  1. जी० ए० नटेसन, लेखक, पत्रकार और राष्ट्रवादी राजनीतिश; सम्पादक, इंडियन रिव्यू, मद्रास।