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भाषण: नागपुरके कांग्रेस अधिवेशन में

सेठ रुस्तमजीको दक्षिण आफ्रिकामें सब लोग जानते हैं। उन्होंने सार्वजनिक जीवनमें हमेशा पूरा-पूरा भाग लिया है। उन्होंने दान भी बहुत दिया है। सत्याग्रहके समयमें उन्होंने एक वर्षकी कड़ी कैद भी भोगी थी। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता स्थापित करनेमें खूब भाग लिया। अब वे हिन्दुस्तानकी सार्वजनिक प्रवृत्तिमें अपना योग दे रहे हैं। इस दानका उपयोग किस तरह किया जाये, इस बारेमें मैं मित्रोंसे परामर्श करूँगा और जो निर्णय होगा उसे कुछ समय में प्रकट करूँगा। इस बीच इतना ही कहता हूँ कि पारसियोंपर यह जो आरोप लगाया जाता है कि वे असहयोग आन्दोलनमें भाग नहीं लेते, उसे पारसी रुस्तमजीने झूठा सिद्ध कर दिखाया है और यह बात ध्यान देने योग्य है कि बम्बईके प्रसिद्ध धनाढ्य सेठ बोमनजी भी आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि असहयोग आन्दोलन इतना शुद्ध है कि उससे पारसी, ईसाई अथवा यहूदी कोई भी, जिन्होंने इस देशको अपना देश बना लिया है, कदापि अलग नहीं रह सकते।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-१२-१९२०
 

८७. भाषण: नागपुरके कांग्रेस अधिवेशन में[१]

२६ दिसम्बर, १९२०

गांधीजीने...इच्छा व्यक्त की कि सभापतिका भाषण आदर और धैर्यके साथ सुना जाये। भारत एक बड़े विवादमें फँसा हुआ है। देश दो शिविरोंमें विभक्त है। मैं चाहता हूँ कि दोनों पक्ष सभापतिका भाषण धैर्यसे सुनें और उनके आदेशका पालन करें। सभापति सत्याग्रही हैं ।सम्भव है कि उनके सभी निष्कर्ष सबको अच्छे न लगें। मैं चाहूँगा कि जो उनसे भिन्न मत रखते हों वे भी सम्मानपूर्वक उनकी बात सुनें।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि मैं पंडालमें किसीको सिगरेट पीते देख रहा हूँ, इससे खतरा हो सकता है। उन्होंने श्रोताओंसे अपील की कि पंडालमें सिगरेट न पिये और कहा कि खतरेके अलावा धूम्रपान भारतीय शिष्टाचारके भी विपरीत है। अन्तमें उन्होंने श्रोताओंसे फिर अपील की कि वे हर वक्ताकी बात धैर्यसे सुने और कहा कि आपकी खामोशीसे मुझे विश्वास हो जायेगा कि ईश्वर भारतीयोंको अपना यह आध्यात्मिक उद्देश्य प्राप्त करनेमें उनकी मदद करेगा। उन्होंने श्रोताओंसे यह अनुरोध किया कि वक्ता जिस भाषामें भाषण देना चाहें, उसीमें उन्हें सुनें। उन्होंने कहा कि

  1. यह भाषण कांग्रेसके नागपुर अधिवेशनके उद्घाटन दिवसपर दिया गया था, जब गांधीजीने श्री विजयराघवाचार्थको कांग्रेसका अध्यक्ष चुननेके प्रस्तावका अनुमोदन किया था।

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