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भाषण: कांग्रेसके नये सिद्धान्तपर

इस प्रस्तावको समझाने का काम अपने ऊपर ले लिया है। मैं उन लोगोंसे व्यक्तिगत तौरपर सिर्फ थोड़े-से शब्द कहना चाहता हूँ, जो मेरी हिन्दुस्तानी में कही बातें समझ नहीं पाये होंगे। मेरी नम्र रायमें यदि कांग्रेस इस प्रस्तावको सर्वसम्मतिसे स्वीकारकर लेती है तो यह उसके लिए सबसे सही बात होगी।

जहाँतक मैं समझता हूँ, इस मंचसे केवल दो प्रकारकी आपत्तियाँ व्यक्त की जायेंगी। एक तो यह कि हम आज अंग्रेजोंसे सम्बन्ध विच्छेद करनेकी बात न सोचें। लेकिन मेरा कहना यह है कि किसी भी मूल्यपर अंग्रेजोंसे सदा सम्बन्ध बनाये रखने की बात सोचना राष्ट्रीय प्रतिष्ठाके लिए अपमानजनक है। (हर्षध्वनि)। हम एक गम्भीर अन्याय झेल रहे हैं, जिसे दूर करवाना हर भारतीयका व्यक्तिगत कर्त्तव्य है। ब्रिटिश सरकार न केवल अन्यायका निवारण करने से इनकार करती है, बल्कि अपनी गलती मानने से भी इनकार करती है, और जबतक उसका यह रुख बना रहता है, हम यह नहीं कह सकते कि हम जो कुछ भी पाना चाहते हैं, वह अंग्रेजोंसे सम्बन्ध बनाये रख कर ही पाना चाहते हैं। हमारे रास्ते में कैसी भी कठिनाइयाँ हों, पर हमें संसारके और सारे भारतके सामने स्पष्ट घोषणा कर देनी चाहिए कि यदि अंग्रेजोंसे हमें यह साधारण न्याय भी प्राप्त नहीं होता तो सम्भव है कि हम उनसे सम्बन्ध-विच्छेद कर दें। मैं यह कदापि नहीं कहूँगा कि हम हर हालत में अंग्रेजोंसे सम्बन्ध समाप्त कर देना चाहते हैं। यदि अंग्रेजोंसे सम्बन्ध रखने से भारत प्रगति करता है तो हम वह सम्बन्ध नष्ट नहीं करना चाहते। परन्तु यदि यह सम्बन्ध हमारे राष्ट्रीय सम्मानके विरुद्ध पड़ता हो तो यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम उसे नष्ट कर दें। (हर्ष-ध्वनि)। इस प्रस्ताव में दोनों तरहके लोगोंके लिए गुंजाइश है; उन लोगोंके लिए भी जो विश्वास करते हैं कि अंग्रेजोंसे सम्बन्ध बनाये रखकर हम अपने-आपको शुद्ध बना सकते हैं और अंग्रेजोंका हृदय भी निर्मल कर सकते हैं, तथा उन लोगोंके लिए भी जो ऐसा नहीं मानते। उदाहरणार्थ श्री एन्ड्रयूजको लीजिए जो दूसरे किस्मका विचार रखनेवालोंमें सबसे आगे हैं। वे कहते हैं कि भारतके लिए अंग्रेजोंसे सम्बन्ध रखनेकी सारी आशा नष्ट हो गई हैं। वे कहते हैं कि पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद होना चाहिए, पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। (हर्षध्वनि)। इस प्रस्तावमें जिस नीतिका अनुमोदन किया गया है, उसमें श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज-जैसे व्यक्तिके लिए भी काफी गुंजाइश है। दूसरा उदाहरण लीजिए, जिसमें मेरे-जैसे आदमी या मेरे भाई शौकत अली हैं। यदि हमें सदैव यह सिद्धान्त मानना हो कि चाहे ये अन्याय दूर किये जायें या नहीं, हमें तो ब्रिटिश साम्राज्यके अन्दर ही अपना विकास करना है तो फिर हमारे जैसोंके लिए उसमें कोई स्थान नहीं होगा। प्रस्तुत प्रस्ताव इतना लचीला है कि दोनों तरहके मतोंका समावेश कर सकता है। अंग्रेजोंको सावधान रहना होगा कि यदि वे न्याय नहीं करना चाहते, तो प्रत्येक भारतीयका यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि वह उस साम्राज्यको नष्ट कर दे।

इसके अलावा, तरीकोंके बारेमें भी हममें कुछ मतभेद है। चूंकि मुझे उत्तर देनेका अधिकार होगा, इसलिए उस प्रश्नपर मैं अभी कुछ नहीं बोलना चाहूँगा।