पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस समय में अपनी बात एक निजी अपीलके साथ समाप्त करना चाहूँगा। इस सम्बन्ध में आपका ध्यान में बंगाल-कैम्प में हुई कलकी घटना और उसके सबककी ओर दिलाऊँगा। यदि आप स्वराज्य चाहते हैं तो स्वराज्य कैसे पाया जाये इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है। बंगालके प्रतिनिधियोंके शिविरमें थोड़ी-बहुत हाथापाई हुई, थोड़ी-बहुत कहा-सुनी हुई, और थोड़ा-बहुत मतभेद प्रकट किया गया, जैसा मतभेद, जबतक संसार रहेगा, हमेशा ही रहेगा। मैं जानता हूँ कि पति और पत्नीके बीच भी मतभेद होते हैं, क्योंकि मैं भी पति हूँ। मैंने माता-पिता और बच्चों में मतभेद देखे हैं, क्योंकि मैं भी चार बेटोंका बाप हूँ। जहाँतक शारीरिक शक्तिका सम्बन्ध है, वे सभी इतने सशक्त हैं कि अपने पिताको परास्त कर सकते हैं। इस प्रकार मुझे पति और पिताका वह विविध अनुभव प्राप्त है। मैं जानता हूँ कि हममें हमेशा छुट-पुट झगड़े होंगे, हममें हमेशा मतभेद रहेंगे। परन्तु कलकी घटनासे मिलनेवाली जिस शिक्षाकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ वह यह है कि मुझे दोनों ही दलोंके[१] सामने बोलनेका गौरव और सौभाग्य मिला। उन्होंने मेरी बात पूरे ध्यान से सुनी और उससे भी बड़ी बात यह कि मैंने उन्हें जो विनम्र सलाह दी उसे स्वीकार करके उन्होंने मेरे प्रति अपने लगाव, स्नेह और अपनत्वका परिचय दिया। मैंने उनसे कहा कि : “मैं यहाँ कोई फैसला देने नहीं आया हूँ; फैसला तो केवल हमारे सम्मान्य अध्यक्ष करेंगे। परन्तु मैं आपसे कहूँगा कि आप अध्यक्षके पास न जायें। आपको उन्हें परेशान करनेकी जरूरत नहीं है। यदि आप सशक्त हैं, यदि आप बहादुर हैं, यदि आप स्वराज्य पानेको कटिबद्ध हैं और यदि आप वास्तव में कांग्रेसके सिद्धान्तोंमें परिवर्तन करना चाहते हैं, तो आप अपना क्रोध काबू में रखें, अन्यायके विरुद्ध आपके हृदय में भावना मचले तो उसे आप रोकें और उन बातोंको यहीं, इसी जगह भुला दें।” मैंने उन्हें अपने मतभेद भुला देनेको कहा, एक दूसरेकी गलतियाँ भुला देनेको कहा। मैं वह सारी बात नहीं दुहराना चाहता, न उसका इतिहास सुनाना चाहता हूँ। शायद आपमें से अधिकांश वह सब जानते भी होंगे। मैं तो इस तथ्यकी ओर आपका ध्यान-भर दिला देना चाहता हूँ। मैं यह नहीं कहता कि उन्होंने अपने मतभेद सुलझा लिये हैं। आशा तो यही करता हूँ कि सुलझा लिये होंगे; परन्तु मैं जानता हूँ कि उन्होंने मतभेद भुला देनेका फैसला किया। उन्होंने अध्यक्षको परेशान न करनेका फैसला किया। उन्होंने यहाँ या विषय-समितिमें कोई प्रदर्शन न करनेका फैसला किया और उन्होंने मेरी उस सलाहको माना; मैं उनका पूरा सम्मान करता हूँ।[२] मैं अपने बंगाली मित्रों तथा अन्य सभी मित्रोंसे जो इस महान सभामें एक निश्चित संकल्प लेकर आये हैं, केवल यह चाहूँगा कि वे सिर्फ अपने देशके कल्याणके लिए प्रयत्न करें, अपने-अपने हकोंके लिए प्रयत्न करें, राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षा-

  1. एक दलके नेता श्री चित्तरंजन दास थे, और दूसरे दलके श्री जितेन्द्रलाल बनर्जी।
  2. अफवाह थी कि जितेन्द्रलाल बनर्जीका नेतृत्व माननेवाला दल कांग्रेस अधिवेशनमें भाग नहीं लेगा, क्योंकि विषय-समितिके चुनाव के सम्बन्धमें मतभेद हैं; किन्तु सभी बंगाली प्रतिनिधियोंने कांग्रेसके खुले अधिवेशनमें भाग लिया।